नितिन नामदेव, रायपुर. कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर आज राजधानी के टैगोर नगर स्थित श्री लाल गंगा पटवा भवन में “कैसे जीना सीखाते हैं श्रीकृष्ण” पर विशेष प्रवचन आयोजित किया गया. इस आयोजन में आचार्य महाश्रमण के शिष्य मुनिश्री सुधाकर और मुनिश्री नरेश कुमार ने लोगों को भगवान कृष्ण की दी हुई जीवन शिक्षा पर प्रवचन दिया.

मुनिश्री सुधाकर ने कहा कि श्रीकृष्ण का जीवन काफी उतार चढ़ाव वाला था, फिर भी हर परिस्थिति में वें समभाव में रहते हुए सदा आनंदित मुस्कुराते रहते थे. हाथो में सुदर्शन चक्र की शक्ति अर्थात महायोद्धा होने के बाद भी जिन्होंने सारथी बनना स्वीकार किया, वें श्रीकृष्ण थे, एक गलती में सर धड़ से अलग करने की क्षमता होने पर भी 99 गलती माफ करने की सहनशीलता रखने वाले भी श्रीकृष्ण थे. यानी उनका यह आचरण हमें सिखाता है, कि हमें अच्छे पल के लिए या विनाश को टालने के लिए सदा प्रयास करना चाहिए.

मुनिश्री ने आगे कहा कि एक बार एक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण से पूछा कि आप सदा हाथ में यह मुरली अर्थात बांसुरी क्यों धारण किए रहते हो. तो श्रीकृष्ण ने बहुत ही सुन्दर उत्तर दिया कि मुरली में तीन प्रकार की विशेषताएं हैं, पहली इसमें किसी प्रकार की गांठ नहीं होती, दूसरी बोलाने पर ही यह बोलती है और तीसरी जब भी बोलती है मीठा ही बोलती है.

उन्होंने आगे कहा कि श्रीकृष्ण और भगवान महावीर के जीवन घटनाओं में बहुत सी समानता थी. जैन धर्म में जिन 63 शलाका पुरुषों अर्थात विशिष्ट व्यक्तियों का उल्लेख आता है. उसमें वासुदेव श्रीकृष्ण का भी आता है. मुनिश्री ने उनके जीवन के तीन विशेष गुणों का वर्णन किया.

  1. वे माधुर्य के देवता थे,
  2. वे कर्मयोग के संस्थापक थे,
  3. वें शांतिदूत थे. क्योंकि कि उन्होंने महाभारत के युद्ध को टालने का हर संभव प्रयास किया.

मुनिश्री नरेश कुमार ने मधुर गीतिका “भवसागर पार लगाए रे महामंत्र नवकार…..” के माध्यम से लोगों को प्रेरणा दिलाई. आज मुनिश्री के सानिध्य में अपनी तपस्या का प्रत्याखान लेकर तपस्वी शोभा सेठिया, अरुण सिपानी, सोनम बरलोटा और पारख पधारे.