रायपुर- छत्तीसगढ़ में 11 संसदीय सचिवों की अवैधानिक नियुक्ति के मामले में लगी दो अलग-अलग याचिकाओं में से अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य औऱ पूर्व मंत्री मो. अकबर की याचिका को लीडिंग याचिका मानते हुए उच्च न्यायालय बिलासपुर ने  महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. उच्च न्यायालय ने पूर्व मंत्री मो. अकबर की याचिका क्रमांक 3057  को लीडिंग याचिका इसलिए माना क्योंकि इसमें सभी संसदीय सचिवों को पार्टी बनाया गया था.

याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने संसदीय सचिवों के कामकाज पर रोक लगाने पर कहा है कि अगर इनकी नियुक्ति मंत्री पद पर राज्यपाल ने नहीं की है, तो उन्हें काम न करने दिया जाए.  ये रोक तब लागू रहेगी जब तक कि संसदीय सचिवों की नियुक्ति पर अंतिम फैसला न हो जाए.

याचिकाकर्ता मोहम्मद अकबर ने कोर्ट से मांग की थी कि जब तक इस मामले में अंतिम फैसला न आ जाए तब तक प्रदेश के 11 संसदीय सचिवों को वेतन, भत्तों, गाड़ियों और दूसरी सुविधाओं के लाभ से वंचित रखा जाए. इस मामले में अंतिम फैसला 23 अगस्त को आना है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने असम के मामले में फैसला दे दिया है कि संसदीय सचिवों की नियुक्ति का अधिकार राज्य सरकारों को नहीं है.

34 करोड़ 10 लाख रूपए की वसूली की करेंगे मांग- मो.अकबर

लल्लूराम डाॅट काॅम से हुई बातचीत में मुख्य याचिकाकर्ता मो.अकबर ने कहा है कि छत्तीसगढ़ में अब तक स्वेच्छानुदान, वेतन-भत्ता, वाहन, आवास, स्टाॅफ में व्यय की गई 34 करोड़ 10 लाख रूपए की वसूली के मांग की तैयारी की जा रही है. सरकार ने संसदीय सचिवों को दी गई सुविधाओं के तहत करोडो़ं रूपए की राशि का व्यय किया है. अब जब संसदीय सचिवों की नियुक्ति पर ही सवाल उठ रहा है, तो ऐसे में खर्च की गई राशि की वसूली होनी चाहिए.