National Sports Day 2024: आज पूरा देश खेल दिवस मना रहा रहा है. ये दिन मेजर ध्यान चंद के लिए समर्पित है, जिन्हें हॉकी का जादूगर भी कहा जाता है. भारत के महान एथलीट रहे ध्यान चंद ने हॉकी की दुनिया में बड़ा नाम कमाया. उनकी उपलब्धियों के चलते साल 1956 में उन्हें भारत के तीसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. नीचे विस्तार से जानिए….
दरअसल, 1905 में हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले ध्यान चंद का जन्म हुआ था. उनकी उपलब्धियों का सफर भारतीय खेल के इतिहास को गौरवान्वित करता है. उन्होंने लगातार तीन ओलंपिक (1928 एम्सटर्डम, 1932 लॉस एंजेलिस और 1936 बर्लिन) में कमाल करते हुए देश को गोल्ड मेडल दिलाए थे. खेलों में ऐतिहासिक योगदान के चलते भारत सरकार ने मेजर ध्यान चंद के सम्मान में उनके जन्मदिन को देश का राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया था.
हिटलर के सामने उसकी जर्मनी टीम को धोया
मेजर ध्यान चंद ने देश के लिए कई यादगार मैच जिताए. उन्होंने 400 से ज्यादा इंटरनेशनल गोल दागे. एक वाकया उनका खूब चर्चित रहा. ये बात है 1936 के बर्लिन ओलंपिक की, जिसमें ध्यान चंद ने तानाशाह हिटलर के सामने ही उनकी जर्मनी की टीम को बुरी तरह धो डाला था. इससे तानाशाह हिटलर भी हैरान थे.
बर्लिन ओलंपिक के फाइनल में दिखा था जलवा
दरअसल, बर्लिन ओलंपिक में हॉकी का फाइनल मैच भारत और जर्मनी के बीच खेला गया था. दिन था 15 अगस्त 1936. बर्लिन के हॉकी स्टेडियम में करीब 40 हजार दर्शक थे. हिटलर भी आया था. फाइनल में हाफ टाइम तक भारत एक गोल से आगे था. फिर ध्यान चंद ने अपने स्पाइक वाले जूते निकालकर जिस तरह खेला वो काबिले तारीफ था, उन्होंने एक के बाद एक कई गोल दागे और जर्मनी को 8-1 से हरा दिया.
हिटलर ने दिया था ये ऑफर
बर्लिन ओलंपिक का फाइनल भारत जीता. कहा जाता है कि ध्यान चंद का प्रदर्शन देख हिटलर हैरान था. वो काफी प्रभावित भी हुआ. खुश होकर हिटलर ने मेजर ध्यान चंद को खाने पर बुलाया और उनसे जर्मनी की तरफ से खेलने को कहा. इतना ही नहीं ध्यान चंद को जर्मन सेना में कर्नल पद का प्रलोभन भी दिया, लेकिन ध्यान चंद ने उसे स्वीकार नहीं किया. उन्होंने था ‘हिंदुस्तान मेरा वतन है और मैं वहां खुश हूं.’
जहां हॉकी खेलते थे, वहीं अंतिम संस्कार हुआ
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद ने 22 साल तक भारत के लिए जलवा दिखाया और 400 से ज्यादा गोल किए. उनके बारे में कहा जाता है कि जब वो मैदान पर खेलते थे तो गेंद स्टिक पर चिपक जाती थी. एक बार जब वो हॉलैंड में खेल रहे थे तो चुंबक होने की आशंका में उनकी स्टिक तोड़कर देखी गई थी. इसके अलावा जब वो जापान में खेल रहे थे तो उनकी स्टिक में गोंद लगे होने की बात भी कही गई थी. 3 दिसंबर 1979 को इस दिग्गज का दिल्ली में निधन हुआ था, फिर झांसी में उनका अंतिम संस्कार उसी मैदान पर हुआ, जहां वो हॉकी खेला करते थे.