प्रदोष व्रत के दिन अगर शनिवार का दिन मिल जाए, तो बड़ा उत्तम माना जाता है। शनि प्रदोष का व्रत इस बार 31 अगस्त को रखा जाएगा। भाद्रपद माह का पहला प्रदोष व्रत शनिवार को पड़ने के कारण इसका महत्व और बढ़ गया है। मान्यता है कि प्रदोष व्रत रखने और भगवान शिव की पूजा करने से महादेव की कृपा से सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ती है।

भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 30 अगस्त, शुक्रवार को रात 2 बजकर 26 मिनट से शुरू होगी। जो 31 अगस्त, शनिवार को रात 3 बजकर 41 मिनट तक रहेगी। भाद्रपद माह का पहला प्रदोष व्रत 31 अगस्त, शनिवार को रखा जाएगा। शनि प्रदोष व्रत की पूजा का मुहूर्त शाम को 5 बजकर 44 मिनट से 7 बजकर 44 मिनट तक है। इस शुभ मुहूर्त में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा सबसे ज्यादा फलदायी मानी जाएगी।

ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि शनि प्रदोष व्रत के दिन पहले महादेव की पूजा करें और फिर शनि की शांति के लिए उपाय करें। शिवजी की पूजा खत्म होते ही एक लोटा में जल,तिल, उड़द, चावल लें और किसी पीपल के वृक्ष के पास जाकर वहां स्नान कराएं। पूजा करें और वहां एक दीपक जलाएं, शनि दोष मे शांति मिलती है। इस उपाय से शिवजी की ऐसी कृपा बरसती है कि शनि उन जातकों के ऊपर क्रूर दृष्टि नहीं डालते हैं।

शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि

प्रदोष व्रत प्रात: काल उठते ही शुरू हो जाता है। सुबह उठकर स्नान और ध्यान करने के बाद पूजा के लिए चौकी पर भगवान शिव और माता पार्वती को स्थापित करें. दोनों का अभिषेक करें और फिर विधि-विधान से पूजा करें। ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। भगवान शिव को बेलपत्र, कनेर और माता पावर्ती को जवाकुसुम के फूल चढ़ाएं. घी का दीया जलाएं और आरती के बाद शिव चालीसा का पाठ करें। अंत में भगवान शिव को हलवे या खीर का भोग लगाएं और प्रसाद ग्रहण करें.

शनि प्रदोष व्रत का महत्व

भाद्रपद के पहले प्रदोष के दिन परिघ योग बन रहा है। पौराणिक कथा के अनुसार, शनि प्रदोष व्रत रखकर भगवान शिवजी की विधि विधान से पूजा करने पर उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। इसके अलावा शिवजी कृपा से व्यक्ति के संकट और कष्ट दूर होते हैं। भगवान भोलेनाथ अपने भक्त की मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। व्यक्ति को दरिद्रता, धन की कमी, रोग, दोष आदि नाश होते हैं।