नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों के त्वरित निपटारे का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में जितनी तेजी से फैसले लिए जाएंगे, “आधी आबादी की सुरक्षा का आश्वासन उतना ही अधिक होगा.”

दिल्ली में जिला न्यायपालिका के राष्ट्रीय सम्मेलन में बोलते हुए पीएम मोदी ने कहा, “आज महिलाओं के खिलाफ अत्याचार और बच्चों की सुरक्षा समाज की गंभीर चिंता का विषय है.” उन्होंने बताया कि “महिलाओं की सुरक्षा के लिए देश में कई सख्त कानून बनाए गए हैं. 2019 में फास्ट-ट्रैक विशेष अदालतों के लिए एक योजना बनाई गई थी. इसके तहत महत्वपूर्ण गवाहों के लिए बयान केंद्रों का प्रावधान है.”

पीएम मोदी ने कहा “इसमें भी जिला निगरानी समितियों की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है. जिला न्यायाधीश, जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक भी इस समिति में भाग लेते हैं. आपराधिक न्याय प्रणाली के विभिन्न पहलुओं के समन्वय में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है. हमें इन समितियों को और अधिक सक्रिय बनाने की जरूरत है.”

प्रधानमंत्री ने राष्ट्र की परिवर्तनकारी यात्रा में बुनियादी ढांचे और तकनीकी प्रगति के साथ-साथ नीतियों और कानूनों की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला.

उन्होंने बताया कि देश ने आजादी के 70 से अधिक वर्षों में पहली बार कानूनी ढांचे में बड़े और महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं. भारतीय न्याय संहिता के रूप में नई न्यायिक प्रणाली का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इन कानूनों की भावना ‘नागरिक पहले, सम्मान पहले और न्याय पहले’ है.

उन्होंने टिप्पणी की कि भारत के आपराधिक कानूनों को शासकों और गुलामों की औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त कर दिया गया है. उन्होंने कहा, “राजद्रोह जैसे औपनिवेशिक कानूनों को निरस्त कर दिया गया है.”

पीएम ने कहा कि “एक तरफ महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों पर सख्त कानून बनाया गया है. दूसरी तरफ पहली बार छोटे अपराधों की सजा के हिस्से के रूप में सामुदायिक सेवा का प्रावधान किया गया है. भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड को भी सबूत के तौर पर मान्यता दी गई है. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत इलेक्ट्रॉनिक मोड में समन भेजने का प्रावधान किया गया है. इससे न्यायपालिका पर लंबित मामलों का बोझ भी कम होगा.

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मार्गदर्शन में जिला न्यायपालिका को इस नई प्रणाली में प्रशिक्षित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का आह्वान किया और सुझाव दिया कि न्यायाधीश और वकील इस अभियान का हिस्सा बनें. उन्होंने कहा, “इस नई प्रणाली से जनता को परिचित कराने में हमारे वकीलों और बार एसोसिएशन की महत्वपूर्ण भूमिका है.”

मोदी ने रेखांकित किया कि सुप्रीम कोर्ट की 75 साल की यात्रा भारत के संविधान, उसके मूल्यों और लोकतंत्र के रूप में विकसित हो रहे भारत की यात्रा भी है. पीएम ने कहा कि “भारत के लोगों ने कभी भी भारत के सुप्रीम कोर्ट या न्यायपालिका के प्रति अविश्वास नहीं दिखाया है.”

मोदी ने कहा कि “न्यायपालिका को हमारे लोकतंत्र का संरक्षक माना जाता है”. इसे अपने आप में एक बड़ी जिम्मेदारी बताते हुए उन्होंने इस दिशा में अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के प्रयासों की सराहना की.

प्रधानमंत्री ने कहा कि न्यायपालिका ने आजादी के बाद से ही न्याय की भावना को कायम रखा है और आपातकाल के दौरान भी संविधान की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए न्यायपालिका की प्रशंसा की. उन्होंने आगे कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने मौलिक अधिकारों की भी रक्षा की और जब भी राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल उठा, न्यायपालिका ने राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखते हुए देश की एकता और अखंडता की रक्षा की.

प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि जिला न्यायालयों में करीब 4.5 करोड़ मामले लंबित हैं और न्याय में इस देरी को खत्म करने के लिए पिछले एक दशक में कई स्तरों पर काम किया गया है. उन्होंने बताया कि न्यायिक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए करीब 8,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. उन्होंने कहा कि पिछले 25 वर्षों में न्यायिक बुनियादी ढांचे पर खर्च की गई राशि का 75 प्रतिशत हिस्सा उनकी सरकार के 10 वर्षों के दौरान खर्च किया गया. उन्होंने कहा, “इन 10 वर्षों में जिला न्यायपालिका के लिए 7.5 हजार से अधिक कोर्ट हॉल और 11 हजार आवासीय इकाइयां तैयार की गई हैं.”