नितिन नामदेव, रायपुर। गतिमान चातुर्मासिक प्रवास अंतर्गत मुनिश्री सुधाकर और मुनिश्री नरेश कुमार के सान्निध्य में 31 अगस्त को शनिवारीय विशेष प्रवचन अंतर्गत नाम मंत्र की महिमा पर उपस्थित जनमेदनी को मार्गदर्शीत किया। श्रीलाल गंगा पटवा भवन टैगोर नगर में मुनिश्री सुधाकर ने कहा कि कुछ कार्य अचिंतनीय होते हैं उसी में एक है नाम, जिसकी अपनी अलग ही महिमा होती है। नाम का प्रभाव व्यक्ति के व्यक्तित्व में पड़ता है परंतु यह हमेशा संभव नहीं कि सभी व्यक्ति अपने नाम अनुरूप ही समान कार्य करें।

मुनिश्री ने आगे बताया कि कैसे करें नाम जप, कैसे करता है नाम मंत्र रक्षा, कैसे बनता है नाम मंत्र ,कौन सा नाम ताप-संताप मिटाता है आदि विषय में विस्तार से उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को बोधित किया।

मुनिश्री ने कहा कि प्राचीन संस्कृति से ही तीन चीजों का प्रभाव विशेष रूप से देखने को मिलता है, पहला मणी- रत्नों का अपना अदभुत संसार है। रत्न व्यक्ति के संपूर्ण जीवन का कायाकल्प कर सकता है। दूसरा है मंत्र-मंत्रों की अपनी शक्ति होती है। मंत्र से चित्त समाधि प्राप्त होती है। आदि- व्याधि से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। मंत्र तभी शक्तिशाली या अपना विशेष प्रभाव देता है जब वह चार कानों अर्थात दो गुरु के व दो शिष्य के या मंत्र दाता व मंत्र याचक तक सीमित रहें। भारतीय संस्कृति में नाम मंत्र की महिमा प्राचीन काल से ही है। नाम जाप ताप व संताप का हरण करता है। संताप अर्थात तनाव।
मुनिश्री नरेश कुमार ने महामंत्र गीतिका का संगान किया।