Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor contact no : 9425525128

छत्तीसगढ़ का ‘जामताड़ा’- (1)

एक मंत्री हैं. उनका पूरा अमला बेहद परेशान है कि उनका पेट नहीं भर रहा. जब मंत्री बने थे, तब पिछली सरकार में दिए गए उन ठेकों पर उनकी नजर थी, जिनका भुगतान होना बाकी था. बहीखाता लेकर बैठ गए. जितना मिला नहीं, उससे ज्यादा हल्ला मच गया. मामला खटाई में पड़ गया. ठेकेदार के भुगतान पर अड़चनों की बाढ़ आ गई. सब कुछ बह गया. मंत्री जी के सपनों का किला ढह गया. मंत्री का स्वभाव ऐसा है कि वह चवन्नी भी ना छोड़े, इसलिए ढूंढ-ढूंढ कर ऐसे नगीनों को अपने विभाग में भर रखा है, जो उनकी हिस्सेदारी का एक आना भी नहीं छोड़ते. बहरहाल इस दफे जो कहानी बाहर आई है, उसने अच्छे अच्छो को हिला रखा है. मंत्री के विभाग का अमला उनके नगीनों के भेजे जाने वाले ‘बारकोड’ से परेशान है. हर महीने एक ‘बारकोड’ भेज कर 20-25 हजार रुपए मांगे जाते हैं. यह कहकर की ‘मंत्री जी का आदेश है’. मंत्री का बंगला छत्तीसगढ़ का ‘जामताड़ा’ हो गया है. अब हिसाब-किताब के फेर में मत उलझिएगा. 20-25 हजार रुपए मामूली रकम लग सकती है पर जब आप राज्य का भूगोल देखेंगे, तो हिसाब लगाते-लगाते थक जाएंगे. जामताड़ा पैटर्न पर सरकारी सिस्टम में कमाई-धमाई का यह नया फार्मूला मंत्री ने राज्य में पहली बार इंट्रोड्यूस किया है. लगे रहिए मंत्रीजी.

मंत्री का फरमान – (2)

अपने विभाग को ‘जामताड़ा’ बनाने वाले मंत्री ने खूब रिसर्च किया है. रिसर्च इस बात पर कि विभाग के किस मद में कितना कमीशन ऐंठा जा सकता है. सुनते हैं कि अफसरों से उन्हें यह पूछने में कोई गुरेज नहीं कि फलाने बजट में से कितना कमीशन निकल सकता है. पिछले दिनों की बात है. विभाग में किसी मशीन की खरीदी पर उन्होंने 20 फीसदी कमीशन मांग लिया. सप्लायर यह सुनते ही भौचक रह गया. मशीन की खरीदी, ट्रांसपोर्टेशन, स्टालेशन, मेंटनेंस और कमीशन के बाद मुंगफली के दाने बराबर कमाई ही उसके हिस्से आ रही थी. उसने कह दिया, चाइनीज मशीन लाकर उस पर मेक इन इंडिया का लोगो लगवा देता हूं. यह सुनते ही मंत्री जी घबरा गए और पूर्व प्रचलित व्यवस्था पर लौट आए. बंगले के सूत्र कहते हैं कि, आलम यह है कि विभाग के कर्मचारियों के वेतन भत्ते पर भी अगर कोई गुंजाइश होती, तो मंत्री की नजरें वहां भी टेढ़ी हो चुकी होती. हिसाब-किताब में तेज मंत्री को लेकर कहा जा रहा है कि विभाग से अगर 2 रुपए का भी भुगतान हुआ हो, तो वह पूछ बैठते हैं कि उनके हिस्से का 20 पैसा कहां है? बहरहाल मंत्री की ओर से अफसरों को दो टूक फरमान दिए जाने की खबर आ रही है. कह दिया गया है कि किसी भी मद से अगर चवन्नी भी जारी हो, तो उसकी सूचना उन तक पहुंचाई जाए.

मुंह में गुलगुला- (3)

मंत्री जी का किस्सा खत्म ही नहीं हो रहा. पिछले दिनों एक आदेश जारी हुआ. मंत्री ने अपने विभाग में एक विवादित अधिकारी की पोस्टिंग करा दी. सरकारी बिरादरी कहती है कि ये अधिकारी ठेके पर काम करता है. मंत्री बस अपना मुंह खोल दे, उस खुले मुंह में इतना भर देने की क्षमता इस अधिकारी में है कि मंत्री के कुछ कहने की गुंजाइश ही खत्म हो जाती है. पूर्ववर्ती सरकार में एक मंत्री के इर्द-गिर्द रह चुके इस अधिकारी का नाम आप जैसे ही गूगल पर डालेंगे, गूगल उनके कारनामों का पूरा ब्यौरा दे देगा. अपने काम को लेकर इस अधिकारी ने खूब शोहरत लूटी है. विभागीय जांच हुई. लोक आयोग में मामला गया. मगर इनके खिलाफ दर्ज शिकायतों का हाल ढाक के तीन पात की तरह रहा. मजाल है किसी ने बाल भी बांका किया हो. इस अधिकारी का मूल पेशा डाक्टरी का है, लेकिन डाक्टरी छोड़ इन्होंने सब काम कर लिया है. सुनते है कि नई पोस्टिंग पाते ही इस अधिकारी ने जिलों में तैनात अपने दो गुर्गों को राजधानी में अतिरिक्त प्रभार दिला रखा है. इसमें से एक गुर्गे की पोस्टिंग चार सौ किलोमीटर दूर है. अब चार सौ किलोमीटर दूर किसी पद पर बैठे व्यक्ति को राजधानी में अतिरिक्त प्रभार देने का क्या तुक? अधिकारी ने फ्लाइंग स्क्वाड बना लिया है और फ्लाइंग स्क्वाड खूब ‘फ्लाई’ कर रहा है. बरसो से सोया विभाग हाल के दिनों में जागा था. कार्रवाई तेज हुई थी. मगर सब किया धरा अब पानी में बह गया. ये विवादित अधिकारी विभाग में उपायुक्त बनकर आए थे, तब गड़बड़ियों पर उठाए जाने वाले आयुक्त के सवालों से उनका मन खिन्न हो रहा था. मंत्री के मुंह में गुलगुला भरा था. तबादले के प्रस्ताव पर मुहर लगवा लिया गया. अब मंत्री और विवादित अधिकारी एक साथ भजन गाते सुने जा रहे हैं. भजन के बोल हैं, ”राम-राम जपना, पराया माल अपना”.

कलेक्टरी का रौब !

यूपीएससी जैसी कठिन परीक्षा पास कर आईएएस, आईपीएस बने अफसरों की असल परीक्षा उनके रिटायरमेंट के बाद शुरू होती है. रौब, रुतबा, सीने में दफन अहंकार, नौकर-चाकर, गाड़ी घोड़ा सब पीछे छूट जाता है. आम से खास बनाने वाली बात खत्म हो जाती है. अफसर अब ‘आम आदमी’ की कतार में आ खड़ा होता है. कुछ साल पहले की बात है एक रौबदार ब्यूरोक्रेट थे. उनकी हर बात का अपना वजन होता था. अक्सर भीड़ में घिरे होते थे. अपने रिटायरमेंट के चंद दिनों बाद ही एक कार्यक्रम में एक कोने में अकेले खड़े दिखाई दिए. इस स्तंभकार ने पूछा, आप अकेले कैसे खड़े हैं? जवाब मिला- अब मैं रिटायर हो गया हूं. ब्यूरोक्रेसी में रिटायर होने का सीधा मतलब है कि ”जिंदगी के रंगीन कैनवास का एक झटके में कोरा हो जाना”. एक आम आदमी जब एक ब्यूरोक्रेट बनता है तो अधिकांश मामलों में सगे-संबंधी, बचपन के दोस्त, गांव, खेत-खलिहान की यादें सब बिखर जाती है. इस आम आदमी का क्लास ‘इलिट’ हो चुका होता है. उसके बिखरने के क्रम की यही पहली शुरूआत है. बहरहाल एक जिले के कलेक्टर कुछ अलग नहीं हो गए. संघर्ष कर आईएएस बने थे. काबिल थे, मगर अब उनकी काबिलियत उनके अहंकार में हर दिन जमींदोज हो रही है. अधिनस्थों की मां-बहन उन्हें खूब याद आती है. उनके शब्दों में इतनी महक नहीं कि उनसे किसी को लगाव हो जाए. उनके शब्द घाव की तरह फूट पड़ते हैं. सरकार ने उन्हें कलेक्टरी दी है. मारपीट करने का प्रमाण पत्र नहीं दे दिया. चंद महीने पहले अपने ही ड्राइवर की बेरहमी से पिटाई कर सुर्खियां बटोरी थी. अब कहा जा रहा है कि बंगले की ड्यूटी में तैनात नौकर पर कहर बरपा है. उनके सहयोगी बताते हैं कि मामले को दबा दिया गया है. कर्मचारियों से बेअदबी की उनकी फितरत सामंतवादी व्यवस्था को स्थापित करती दिखती है. कहीं दीवारों पर लिखा था कि, कर्म का कोई Menu नहीं होता. जो आप Serve करेंगे, वहीं आप Deserve करेंगे.

चूक किसकी?

एशियन डेवलपमेंट बैंक यानी एडीबी के न्यौता पर उप मुख्यमंत्री अरुण साव और पीडब्ल्यूडी सचिव कमलप्रीत सिंह का अमेरिका दौरा वीजा नहीं मिलने से रद्द हो गया. दिल्ली में रह कर वीजा क्लियर कराने की दौड़ भाग काम ना आ सकी. दोनों रायपुर लौट आए. छत्तीसगढ़ सरकार का दिल्ली में रेजिंडेंट कमिश्नर कार्यालय है और इस कार्यालय का काम सरकारी लाइजनिंग देखना है. बावजूद इसके अमेरिकी एंबेसी से वीजा क्लियर नहीं हो सका. रेजिडेंट कमिश्नर कार्यालय समय-समय पर विवादों से घिरता रहा है. इसके पीछे यहां पदस्थ डिप्टी कमिश्नर की भूमिका बताई जाती है. सरकार किसी की भी हो मजाल है किसी ने उनकी भूमिका बदलने का दुःसाहस किया हो. पिछली सरकार में लंबी शिकायतों के बाद एक कोशिश जरूर हुई थी. कुछ दिनों के लिए डिप्टी कमिश्नर को दिल्ली से उठाकर सीधे बस्तर भेज दिया था. मगर उच्च पदस्थ संबंधों ने दोबारा दिल्ली का रास्ता बुन दिया. सरकार के कई बड़े चेहरे डिप्टी कमिश्नर की भूमिका पर सवाल उठाते मिल जाएंगे. बहरहाल कई मौकों पर मंत्री-अफसरों के विदेश दौरों के अपने मायने होते हैं. इस तरह के दौरे मंत्रियों और अफसरों के घूमने फिरने का जरिया भर नहीं होते. दुनिया भर में चल रहे कामकाज को करीब से देखा जाता है. रमन सरकार के दौरान वन मंत्री रहे महेश गागड़ा के अमेरिकी दौरे पर भी वीजा संबंधी दिक्कत खड़ी हुई थी. गागड़ा के वीजा के आवेदन को अमेरिकी एंबेसी ने रद्द कर दिया था. यह मामला तब केंद्रीय विदेश मंत्री रही सुषमा स्वराज तक पहुंचा. विदेश मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद अमेरिकी एंबेसी ने आनन फानन में वीजा क्लियर किया था. उप मुख्यमंत्री अरुण साव के अमेरिकी दौरे में वीजा क्लियर नहीं होना छत्तीसगढ़ की सरकार की प्रतिष्ठा पर सवाल उठाने जैसा है. मुमकिन है कि सरकार इस मामले पर विदेश मंत्रालय से अपनी आपत्ति दर्ज करे.

डिस्कनेक्ट

पिछले दिनों मंत्रालय में लैंडलाइन फोन कनेक्शन डिस्कनेक्ट होने की खबर आई. सचिव स्तर तक के अफसरों के फोन कनेक्शन को छोड़कर इससे नीचे के कई अफसरों और मंत्रालयीन कर्मचारियों के फोन नंबर टेम्पररी डिसकनेक्ट कर दिए गए. मालूम पड़ा कि महीनों से बिल का भुगतान नहीं होने की वजह से नंबर डिसकनेक्ट कर दिए गए थे. बीएसएनएल से जुड़े एक अफसर ने बताया कि कई विभागों का लाखों रुपए का बिल बकाया है. सरकारी सिस्टम में बिल की वक्त पर अदायगी नहीं करने की पुरानी रवायत है. बिजली कंपनी को ही देख ले, बकायादारों की सूची में आधे से ज्यादा सरकारी विभाग ही मिलेंगे. आजकल प्राइवेट सेक्टर की टेलीकाम कंपनियां बिल की वसूली के लिए उपभोक्ताओं को फोन कराती हैं. फोन करने वाले टेलीकालर इज्जत की बखिया उधेड़ कर रख देते हैं. हैसियत नहीं तो फोन नंबर क्यों रखते हो? जैसे अल्फाज मुखारविंद से अलंकृत होते हैं. इज्जत के रखवाले या तो फौरन बिल पटाते हैं या उस कंपनी से तौबा कर लेते हैं. दो-चार सौ रुपये के बिल पर भी निजी कंपनियां मेंटली हैरसमेंट करती हैं. सरकारी टेलीकाम कंपनियां अपना दुखड़ा किससे रोये, वह भी तब जब बात सरकार की ही हो रही हो.