सुप्रीम कोर्ट ने सख्त हिदायद दी कि निचली अदालतों के लिए मुकदमों की जल्दी सुनवाई के लिए हाई कोर्ट समय सीमा तय कर रहे हैं और सिर्फ इस आधार पर जमानत देने से इनकार सही नहीं है. कोर्ट ने कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है क्योंकि इस तरह की समयावधि निर्धारित करना असाधारण मामलों में ही तय किया जाना चाहिए.

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट द्वारा मुकदमों के जल्दी निपटान और जल्द सुनवाई के लिए जमानत देने से इनकार करना शीर्ष अदालत की संविधान पीठ के फैसलों के खिलाफ है.

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बार एंड बेंच के मुताबिक, पीठ ने कहा, ” सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ की घोषणा के बावजूद, हमने देखा है कि कई हाई कोर्ट जमानत खारिज करते समय मुकदमों की जल्दी सुनवाई के लिए समय तय कर रहे हैं. ऐसा नहीं हो सकता और सिर्फ इस आधार पर जमानत से इनकार किया जाए कि मुकदमे का निपटारा शीघ्रता से किया जाएगा. मुकदमे की सुनवाई की सीमा का ऐसा निर्धारण केवल बहुत ही असाधारण मामलों में किया जाना चाहिए. “

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गौरतलब है कि फरवरी में न्यायमूर्ति ओका की अध्यक्षता में संविधान पीठ के फैसले में कहा गया था कि अदालतों को किसी अन्य अदालत में लंबित मामलों के लिए समयबद्ध कार्यक्रम निर्धारित करने से बचना चाहिए.

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न्यायमूर्ति ओका की पीठ ने फरवरी में दोहराया था कि हाई कोर्ट भी संवैधानिक न्यायालय हैं और उन्हें सुप्रीम कोर्ट के अधीनस्थ नहीं माना जा सकता. अगस्त में एक अन्य पीठ ने भी कहा था कि वह हाई कोर्ट को समयबद्ध तरीके से मामलों की सुनवाई करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती.