श्रवण चौहान. घरघोड़ा. जमीन भी गई रोजगार भी नहीं मिला, न ही किसानों को बोनस मिल रहा. अब स्थानीय रहवासी किसान-मजदूर जाएं तो जाएं कहां.  जीने का सहारा खेती-किसानी को सरकार ने माइंस प्रबंधन को भू-अर्जन कर दे दिया है. अधिकारियों की दर पर जाकर थक गए ग्रामीण अब आंदोलन का रुख अख्तियार कर रहे हैं.

मामला है एसईसीएल बरौद कोल माइन्स का, जहां शासन ने 400 के आसपास किसानों का जमीन भू-अर्जन कर एसईसीएल को दे दिया था. 2008 में प्रक्रिया शुरू हुई और 2010 के आसपास माइन्स प्रारंभ हो गया. यहां तक माइंस से प्रोडक्शन भी शुरू हो गया है, लेकिन सरकार की तरफ से पुनर्वास नीति का न तो पालन किया गया और न ही लोगों को इसका लाभ मुहैया कराया. अब वर्ष 2018 समाप्त होने को है, लेकिन स्थानीय लोगों को न तो घर मिला, और न ही रोजगार.

किसान हर बार आंदोलन करते हैं, और प्रशासन की तरफ से और अधिकारियों की तरफ से आश्वासन का झुनझुना पकड़ा देते हैं. लेकिन लोगों को न तो रोजगार प्रदान किया जाता है, और न ही बोनस दिया जाता है. ऐसे में एक बार फिर एसईसीएल माइंस के खिलाफ ग्रामीणों ने मोर्चा खोलते हुए रोजगार की मांग को लेकर आंदोलन कर दिया है.

ग्रामीणों के नारेबाजी करते ही एसईसीएल के अधिकारियों ने आपस में बैठक बुलाई और ग्रामीणों को समझाने की कोशिश करते हुए रोजगार देने की बात कही. लेकिन ग्रामीणों ने कहा कि 10 साल के अंतराल में किसी व्यक्ति को रोजगार नहीं मिला है और न ही कोई प्रक्रिया प्रशासन की तरफ से शुरू किया. जिन लोगों को नौकरी देने की बात कही गई थी, उनको भी अभी तक ज्वाइनिंग लेटर नहीं दिया गया है, जिनको नौकरी मिली है, उन्हें बरौद माइंस में पोस्टिंग न देकर बलरामपुर के माइंस में पोस्टिंग दी जा रही है.

अब ग्रामीण आरपास की लड़ाई के मूड में है, और इसके लिए आने वाले दिनों में बड़े आंदोलन करने की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं, जिसकी चेतावनी प्रशासन और प्रबंधन को दी गई है. बहरहाल, सवाल यह है कि किसानों की जमीन तो सरकार भू-अर्जन की प्रक्रिया अपना कर ले लेती पर जब पुनर्वास की बात आती है तो कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाती है.