गजेंद्र तोमर, मुरैना। मुरैना जिले की ग्राम पंचायत बेरखेड़ा के माजरा बहेरी में आदिवासी परिवारों को अंतिम संस्कार के लिए उचित स्थान तक नहीं मिल पा रहा है। गांव में जो मुक्तिधाम है, वहां तक पहुंचने का रास्ता बारिश के पानी से भरा हुआ है, और चारों ओर कंटीली झाड़ियां उगी हुई हैं। जगह-जगह कीचड़ और गंदगी फैली हुई है। मुक्तिधाम की बाउंड्रीवॉल भी टूटी होने के कारण वहां मवेशियों का जमावड़ा रहता है, जिससे अंतिम संस्कार के समय लोगों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ता है।
बहेरी के आदिवासी परिवारों का कहना है कि उन्होंने कई बार सरपंच, सचिव, जनपद सीईओ और एसडीएम से मुक्तिधाम की हालत सुधारने की गुहार लगाई, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। इस वजह से किसी की मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार करने में भारी परेशानी उठानी पड़ती है।
रविवार को बहेरी गांव के निवासी रमेश आदिवासी की मृत्यु के बाद, उनके परिजन अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट पहुंचे। उन्हें लगभग 700 मीटर लंबे कच्चे रास्ते पर भरे हुए गंदे पानी से होकर शव ले जाना पड़ा। जब वे मुक्तिधाम पहुंचे, तो वहां चारों ओर उगी कंटीली झाड़ियों के कारण खड़े होना भी मुश्किल हो रहा था। श्मशान घाट की बाउंड्रीवॉल टूटी होने की वजह से मवेशी हर तरफ विचरण कर रहे थे, और वहां मौजूद टीनशेड में केवल शव रखने की ही जगह थी। अंतिम संस्कार में शामिल हुए लोगों को बारिश के बीच खड़े रहकर ही दाह संस्कार करना पड़ा।
स्थानीय निवासी प्रहलाद आदिवासी, बृजमोहन आदिवासी, संतराम आदिवासी और जनरल आदिवासी ने बताया कि श्मशान घाट की दशा सुधारने के लिए उन्होंने कई बार लिखित आवेदन दिए, लेकिन उनकी समस्याओं को पूरी तरह अनदेखा कर दिया गया। आदिवासी परिवारों का कहना है कि जब तक प्रशासन इस मुद्दे पर ध्यान नहीं देगा, तब तक उन्हें हर बार इसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
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