रायपुर. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के चारों सलाहकारों ने मोर्चा संभाल लिया है. सीएम भूपेश बघेल के चारों सलाहकार अपने- अपने क्षेत्र के दिग्गज हैं. माना जा रहा है कि इनके ज़रिए सरकार बेहतर और नए तरीके से काम करेगी. चारों सलाहकारों को जल्द ही मंत्रालय में कमरा अलॉट हो जाएगा. विनोद वर्मा राजनीतिक सलाहकार के तौर पर रणनीति बनाने का काम करेंगे. जबकि रुचिर गर्ग मीडिया को लेकर सलाह देंगे. राजेश तिवारी विधायकों से सरकार के समन्वय का काम करेंगे, जबकि प्रदीप शर्मा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बूस्ट करने की दिशा में काम करेंगे.
भूपेश बघेल ने अपना मीडिया सलाहकार रुचिर गर्ग को बनाया है. रुचिर गर्ग विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पत्रकारिता से राजनीति में आए.
रुचिर गर्ग
रुचिर गर्ग की सबसे बड़ी खासियत है कि कोई एक बार मिले तो उनकी मेहमाननवाजी और विनम्रता का कायल हो जाता है. लेकिन उनके व्यवहार का बेहद दिलचस्प पहलू है कि वे स्वभाव में जितने विनम्र रहते हैं. उतने ही आक्रामक हैं. छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता में रहते हुए उनकी पहचान बेहद आक्रामक पत्रकार की रही है. रुचिर गर्ग राजनीति में आने से पहले हार्डकोर पत्रकार रहे हैं. तीस साल के पत्रकारिता करियर में उन्होंने जनता के हितों को प्राथमिकता पर रखकर पत्रकारिता की है. उनका रिकार्ड रहा है कि जिस मीडिया हाऊस में उन्होंने काम किया. उसे राज्य का नंबर वन बना दिया. वे बेहद वर्कोहेलिक हैं और अपनी ऊर्जा पूरी से टीम को बेहद प्रभावशाली बनाने की क्षमता रखते हैं.
रुचिर गर्ग देश के पहले पत्रकार हैं जिन्होंने 90 के दशक में पीपुल्स वार ग्रुप के कैंप में जाकर, उनके कैंप में रहकर रिपोर्टिंग की थी. माओवादी संगठन के तौर-तरीके, उनके रहने का तरीका पहली बार उनकी रिपोर्टिंग के ज़रिए सामने आया था. उन्होंने सभी बड़े माओवादी नेताओं का इंटरव्यू किया. जिसमें पीपल्स वार ग्रुप के महासचिव भूपति, किशनजी का इंटरव्यू किया. इसे देखते हुए तात्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने उनको सरकार और माओवादीियों के बीच शांतिवार्ता में मध्यस्थता करने की अपील की. लेकिन रुचिर गर्ग ने इसे ठुकरा दिया. उनका कहना था कि उनका काम लिखना है. उन्होंने इंकार किया.
माओवादियों में कैडर क्या होता है. उनकी दिनचर्या कैसी होती है. वे कैसे रहते हैं. ये तमाम बातें रुचिर गर्ग की रिपोर्ट के ज़रिए देश में पहली बार सामने आईं. बस्तर की ईमली को लेकर रुचिर गर्ग ने एक सीरीज़ लिखी थी. जो काफी चर्चित रही. अविभाजित मध्यप्रदेश के साल वन की अर्थव्यवस्था साल बोरर के नाम पर क्या घट रहा है, इस पर रुचिर ने पूरी सीरीज़ लिखी थी. ये सीरीज़ पूरे देश में चर्चित रही है.
कम ही लोगों को मालूम है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के नेताओं ने उन्हें लड़ने का प्रस्ताव दिया था. जिसे उन्होंने सीधे तौर पर खारिज कर दिया था. भाजपा सरकार में उनकी ईमानदार आवाज़ को दबाने की कई दफे कोशिश की गई. लेकिन वे न दबे न झुके.
रुचिर गर्ग कई दफा ज़ाहिर कर चुके हैं कि वे राजनीति में केवल इसलिए आए क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी के शासनकाल में देश के संविधान और धर्मनिरपेक्ष तानेबाने पर संकट मंडराने लगा है. जिसके खिलाफ अब पत्रकारिता में रहते हुए लड़ाई संभव नहीं थी. इसलिए वे राजनीति में आए. उन्होंने मोदी से सीधी लड़ाई लड़ रहे राहुल गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस का हाथ थामा.
लड़ने के लिए उन्होंने 90 विधानसभा में से कांग्रेस के लिए सबसे कठिन सीट रायपुर दक्षिण सीट चुनी. टिकट नहीं मिली लेकिन तो वे रायपुर लोकसभा की सभी सीटों पर नुक्कड़ सभाओं और पॉकेट मीटिंग के ज़रिए कांग्रेस को जीताने का काम करते रहे. कांग्रेस की सरकार बनने के बाद उनके अनुभव को देखते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उन्हें मीडिया सलाहकार बनाया है.