विक्रम मिश्र, लखनऊ. उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में एक बड़ा मामला सामने आया है. मामला आरक्षण में कट ऑफ मेरिट से जुड़ा हुआ है. आरटीआई के माध्यम से मिली जानकारी के अनुसार, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग से 9 सितम्बर 2024 को एक अभ्यर्थी के RTI के जवाब में बताया गया कि UPPCS द्वारा आयोजित समीक्षा अधिकारी और सहायक समीक्षा अधिकारी की प्रारंभिक परीक्षा का कट ऑफ मेरिट जनरल से ओबीसी का ज़्यादा है.
कट ऑफ मेरिट में सामान्य वर्ग 102 कम आय वर्ग यानी EWS वर्ग अभ्यर्थियों की कट ऑफ मेरिट 106, जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग की कट ऑफ मेरिट 110 है. इसी प्रकार सहायक समीक्षा अधिकारी लेखा में भी ऐसा ही मामला सामने आया है, जिसमें की ओबीसी के अभ्यर्थियों की कट ऑफ मेरिट अन्य की अभ्यर्थियों की अपेक्षा ज्यादा है.
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सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों की कट ऑफ मेरिट 100 है, अनुसूचित जाति के अभ्यर्थियों की कट ऑफ मेरिट 96 तो वहीं अन्य एवं पिछड़ा वर्ग के अभ्यर्थियों की कट ऑफ मेरिट 107 और EWS अभ्यर्थियों की कट ऑफ मेरिट 115 बताया गया है.इसी प्रकार समीक्षा अधिकारी लेखा सचिवालय (विशेष चयन) वाले अभ्यर्थियों में भी कट ऑफ मेरिट में अंतर दिखता है, जिसमें अनुसूचित जाति के अभ्यर्थियों की कट ऑफ मेरिट 98 तो ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों की कट ऑफ मेरिट 112 है.
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बता दें कि उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग की निष्पक्षता पर हमेशा से ही संदेह की उंगलियां उठती रही है. यूपी लोक सेवा आयोग की भर्ती परीक्षा में वर्ष 2012 से 2017 के बीच हुई बड़े पैमाने पर धांधली मामले की जांच हुई थी. मामले की जांच कर रही सीबीआई की टीम ने लोक सेवा आयोग परिसर से भर्ती में धांधली से जुड़े सभी दस्तावेज लेकर जांच शुरू किया था. तब वर्ष 2012 से 2017 मे सपा शासनकाल के दौरान आयोग की हुई अन्य भर्ती परीक्षा में भी व्यापक तौर पर धांधली का आरोप लगा था और तत्कालीन आयोग के चेयरमैन अनिल यादव पर भी अपने चहेतों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगा था. हालांकि, जांच की स्टेटस रिपोर्ट अब भी साफ नहीं हो पाई है.
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दूसरी तरफ साल 2017 में भाजपा गठबंधन की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने समाजवादी पार्टी के शासनकाल में हुई भर्तियों को पाप और कचरा तक कहा था, जबकि उसकी जांच के आदेश भी दिए थे. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वालो पर सख्ती के निर्देश भी दिए थे, लेकिन तब से लेकर अभी तक इसमें भी हुई कार्रवाई से पर्दा नहीं उठ पाया है. इसके अलावा समाजवादी पार्टी के शासनकाल में हुई एलटी ग्रेड की परीक्षा में ब्लैकलिस्ट फर्म को पेपर छापने का टेंडर दिए जाने का आरोप भी आया था, जिसमें एग्जाम कंट्रोलर और ब्लैकलिस्ट फर्म के बीच में लेन-देन की शिकायतें मिली थी.
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