पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए 15 दिवसीय पितृपक्ष 17 सितंबर मंगलवार से शुरू हो रहे हैं. प्रयाग में पिंडदान का विशेष महत्व है, क्योंकि इसे पितरों की मुक्ति का पहला और मुख्य द्वार कहा जाता है. प्रयाग के संगम पर श्रद्धालु पिंडदान और तर्पण कर रहे हैं और त्रिवेणी धारा में डुबकी लगाकर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना कर रहे हैं. पौराणिक मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान पितरों की आत्माएं भूखी-प्यासी होकर पृथ्वी पर विचरण करती हैं और अपने बच्चों से प्राप्त पिंड दान से संतुष्ट होती हैं.

प्रयागराज (इलाहबाद) के त्रिवेणी संगम पर पिंडदान करने से भगवान विष्णु के साथ-साथ 33 करोड़ देवी-देवता भी तीर्थराज प्रयागराज में पितरों को मोक्ष प्रदान करते हैं. धार्मिक ग्रंथों में इस स्थान का वर्णन तीर्थराज प्रयागराज के नाम से किया गया है. प्रयागराज में भगवान विष्णु बारह रूपों में निवास करते हैं, जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है. वेणी माधव, अक्षयवट माधव, शंख माधव, चक्र माधव, अनंत माधव, मनोहर माधव, बिंदु माधव, आदि वट माधव, असि माधव, संकट हर माधव, गदा माधव, पद्म माधव, द्वादश माधव प्रयागराज की रक्षा करते हैं. गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम को त्रिवेणी कहा जाता है. संगम पर अदृश्य रहने वाली सरस्वती यहां ज्ञानियों के मुख से फूटती हुई दिखाई देती है. वर्षों से, देश और दुनिया भर में विभिन्न संस्कृतियों के लोगों के आवागमन के कारण, ज्ञान की सरस्वती हर रूप में यहां मौजूद है. धर्म और आध्यात्म की नगरी प्रयागराज में धर्म के साथ-साथ ज्योतिष और कर्मकांड के भी कई विद्वान मिल जाएंगे.