वाराणसी: पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृपक्ष का समय अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. जो कि साल में 15 दिनों का एक विशेष समय होता है. हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है, इस दौरान माना जाता है कि हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं. इस समय नियमित रूप से श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.

पितृपक्ष का यह आयोजन हर साल आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक होता है. इस बार द्वितीया तिथि की हानि के कारण और प्रतिपदा तिथि की स्थिति के अनुसार 18 सितंबर को श्राद्ध किया जाएगा. शास्त्रों के अनुसार, प्रतिपदा तिथि के उदय होने से पितृपक्ष की शुरुआत 19 सितंबर से मानी जाएगी.

पितृ विसर्जन: पितृपक्ष के दौरान पितृ विसर्जन 2 अक्टूबर को होगा. फिर 3 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र की शुरुआत होगी.

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पितृ ऋण का महत्व: शास्त्रों में देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण का वर्णन मिलता है. पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए श्राद्ध-तर्पण और ब्राह्मणों को भोजन कराना महत्वपूर्ण होता है. ये क्रिया पितरों को संतुष्ट करने और परिवार की समृद्धि को बढ़ाने में सहायक होती है.

हर सनातनी को अपने माता-पिता की मृत्यु तिथि पर श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध, तर्पण और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए. यह कार्य सरल होते हुए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसके द्वारा परिवार की सुख-समृद्धि सुनिश्चित होती है.

श्राद्ध की तिथि-

प्रतिपदा- बुधवार 18 सितंबर
द्वितीया- बृहस्पतिवार 19 सितंबर (महालया शुरू)
तृतीया- शुक्रवार 20 सितंबर
चतुर्थी- शनिवार 21 सितंबर
पंचमी- रविवार 22 सितंबर
षष्ठी- सोमवार 23 सितंबर
सप्तमी- मंगलवार 24 सितंबर
अष्टमी- बुधवार 25 सितंबर
नवमी- बृहस्पतिवार 26 सितंबर (मातृ नवमी, सौभाग्यवति स्त्रियों का श्राद्ध)
दशमी- शुक्रवार 27 सितंबर
एकादशी- शनिवार 28 सितंबर
द्वादशी- रविवार 29 सितंबर (संन्यासी, यति, वैष्णवों का श्राद्ध)
त्रयोदशी- सोमवार 30 सितंबर
चतुर्दशी- मंगलवार 01 अक्टूबर (शस्त्र या दुर्घटना आदि में मृत्यु व्यक्तियों का श्राद्ध)
सर्वपितृ अमावस्या- (पितृ विसर्जन) बुधवार 02 अक्टूबर (अज्ञात तिथि वालों का श्राद्ध, भगवान श्रीहरि के प्रसन्नार्थ ब्राह्मण भोजन, पितृ विसर्जन, महालया समापन)