रायपुर। लाव लश्कर में घूमने वाले मंत्रियों के लिए बुधवार का दिन आम दिनों की तुलना में कुछ अलग था. साय सरकार के पांच मंत्री रोहिणीपुरम स्थित सरस्वती शिशु मंदिर पहुंचे. मंत्रियों के काफिले में बजने वाली सायरन की तेज आवाज गायब थी. साए की तरह साथ चलने वाले पीए और पीएसओ की मौजूदगी नहीं थी. इन मंत्रियों ने यहां जमीन पर बैठकर खाना खाया और अपनी थाली खुद ही धोयी. ये पांच मंत्री किसी सरकारी बैठक का हिस्सा नहीं थे. इन मंत्रियों को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपनी समन्वय समिति की बैठक के लिए बुलाया था. सूबे में भाजपा की सरकार है और भाजपा राष्ट्रीय स्वंय सेवक की राजनीतिक शाखा कही जाती है. संघ की छत तले मंत्री जमीनी दिखते रहे. भाजपा के राज्य की सत्ता में आने के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की अगुवाई में समन्वय समिति की यह पहली बैठक थी, जिसमें मंत्रियों को बुलाया गया था. मंत्रियों में उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा, वित्त मंत्री ओ पी चौधरी, स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल, वन मंत्री केदार कश्यप और राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा बुलाए गए थे. मंत्रियों के साथ-साथ भाजपा संगठन के प्रमुख चेहरे भी इस बैठक का हिस्सा थे, जिनमें राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश, क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल, संगठन मंत्री पवन साय, प्रदेश अध्यक्ष किरण देव, महामंत्री संजय श्रीवास्तव और भरत वर्मा शामिल थे. इनके अलावा पूर्व विधायक शिवरतन शर्मा, प्रदेश उपाध्यक्ष भूपेंद्र सवन्नी और पूर्व विधायक सौरभ सिंह को भी इस बैठक के लिए बुलाया गया था. बैठक में भारतीय मजदूर संघ, सेवा भारती, विद्या भारती, विश्व हिन्दू परिषद जैसे अनुषांगिक संगठनों के प्रतिनिधि भी शामिल थे.

अटकलें लगाई जा रही थी कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की समन्वय समिति की बैठक में सरकार के कामकाज की समीक्षा की जाएगी. मंत्रियों का परफाऱमेंस आडिट किया जाएगा. निगम,मंडल,आयोग में होने वाली संगठनात्मक नियुक्ति पर रायशुमारी होगी. मगर बैठक इसके इतर भविष्य की कार्ययोजना पर टिकी रही. भाजपा शासित राज्यों में संघ इस तरह की समन्वय समिति की बैठक लगातार कर रहा है. इस बैठक का मुख्य एजेंडा सामाजिक समरसता, आर्थिक दृष्टिकोण, वैचारिक शिक्षा का प्रसार करना, आंतरिक सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों के खिलाफ प्रभावी रणनीति बनाने के इर्द-गिर्द रहा. संघ से जुड़े सूत्र बताते हैं कि भाजपा संगठन और सत्ता के साथ अपने अनुषांगिक संगठनों को जोड़कर संघ करीब छह प्रकल्पों पर काम शुरू कर रहा है. इसके लिए अलग-अलग छह समितियां बनाई गई हैं. ये समितियां सुरक्षा, सामाजिक समरसता, वैचारिक, आर्थिक, सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में काम करेंगी. हर समिति में सरकार का एक मंत्री, संगठन का एक नेता और संघ का प्रतिनिधि शामिल किया जाएगा. नवगठित समितियां एक हफ्ते के भीतर अपना प्रेजेंटेशन तैयार करेंगी. हर छह महीने में संघ समितियों के कामकाज की समीक्षा करेगा.

क्या होगी समितियों की जिम्मेदारी?

सूत्र बताते हैं कि सुरक्षा संबंधी समिति का कार्यक्षेत्र धर्मांतरण, लव जेहाद, नक्सल, अपराध, आतंकवादी संगठनों के खिलाफ नकेल कसने की प्रभावी रणनीति तैयार करने की होगी. इसी तरह सामाजिक समरसता से जुड़ी समिति आदिवासी और अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने की नीति पर काम करने की होगी. इसी तरह आर्थिक, शिक्षा, वैचारिक और सेवा संबंधी समितियों को उन क्षेत्रों के लिए प्रभावी रणनीति तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. कहा जा रहा है कि संघ अपनी अलग-अलग वैचारिक इकाईयों के द्वारा एक रोडमैप तैयार कर रहा है. बताते हैं कि संघ की समन्वय समिति की बैठक की अध्यक्षता पहले मध्य क्षेत्र के क्षेत्र संघचालक डाॅक्टर पूर्णेंन्दु सक्सेना को करनी थी, लेकिन उनके प्रवास के मद्देनजर यह बैठक अखिल भारतीय बौद्धिक सह प्रमुख दीपक विस्पुते ने ली.

रामविचार की गैर मौजूदगी चर्चा में?

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के समन्वय समिति की बैठक में साय सरकार के चुनिंदा मंत्रियों को ही बुलाया गया था. इनमें केदार कश्यप को छोड़कर सभी नए मंत्री शामिल थे. इस बैठक से सरकार के वरिष्ठ मंत्री रामविचार नेताम की गैर मौजूदगी चर्चा में रही. समन्वय समिति की बैठक में अपेक्षित नामों की सूची में उनका नाम शामिल नहीं था. रामविचार नेताम भाजपा के वरिष्ठ आदिवासी नेता हैं. संघ के नजदीकी माने जाते हैं. बावजूद इसके समन्वय समिति की बैठक में उन्हें नहीं बुलाया गया. इसे लेकर संगठन में चर्चा बनी हुई है.

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