पुरुषोत्तम पात्र, (देवभोग) गरियाबंद. 47 एकड़ रकबे में लगाये गए 12 हजार फलदार पौधों की गड़बड़ी की जांच करने पहली बार पहुंचे तकनीकी अधिकारी 35 मिनट में जांच पूरी कर चल दिए. वहीं घपले की आवाज उठाने वाले जनपद सदस्य बात करने की कोशिश करते रहे पर अफसरों ने अनसुना कर दिया.
बिरिघाट में मनरेगा योजना के तहत 1 करोड़ 32 लाख रुपए लागत के फलदार पौधे लगाने की योजना में गड़बड़ी उजागर होने के बाद कलेक्टर ने 1 दिसम्बर को जांच का आदेश दिया था. टीम में शामिल तकनीकी अफसरों की ओर से जांच बाकी था, एक माह बाद शुक्रवार को तकनीकी दल में शामिल आरइएस विभाग के ईई आरएस नेताम, उद्यानिकी के तकनीकी अफसर के साथ पहली बार जांच करने पहुंचे.
चंद सूखे पौधों को देख वापस लौटे
अफसर दोपहर 12:35 को पहूच कर 1.10 तक कार्य स्थल पर मौजूद रहे. महज 35 मिनट में जांच की औपचारिकताएं पूरी हो गई. इतने कम समय मे दल ने 47 एकड़ में फैले एरिया को एक चक्कर लगाया. किनारे के कुछ सूखे पौधों को ताक झांक किया और चलते बने. मामले में जांच अधिकारी आरएस नेताम ने कहा कि जांच के तय बिन्दु में जो हमको देखना था, हमने देख लिया. जरूरत पड़ी तो और आएंगे, जबकि उद्यानिकी के उप संचालक हितेश मेश्राम से मोबाइल पर कई बार सम्पर्क करने की कोशिश की गई, उनसे बात नहीं हुई.
किसी से बात नहीं की अफसरों ने
जांच कराने की मांग को लेकर लामबद्ध इलाके के जनपद सदस्य निर्भय ठाकुर ने बताया कि वे जांच की प्रक्रिया देख ताज्जुब रह गए. जांच अफसरों से बात करने की कोशिश करते रहे पर उन्होंने बात को अनसुना कर दिया, वहां मौजूद मीडिया कर्मी भी मामले से जुड़े सवाल के जवाब जानना चाहा, पर उनकी भी नहीं सुनी गई. ठाकुर ने कहा कि यह त्रिस्तरीय पंचायती राज में सरपंच के साथ ठगी का हाईटेक मामला है. उच्च स्तर के अफसरों के मिलीभगत के कारण जांच में ढिलाई किया जा रहा है.
होना था उपयोग सामग्री का भौतिक सत्यापन
निर्भय ठाकुर ने कहा कि सामग्री पर मोटी रकम व्यय बता कर रायपुर के अज्ञात वेंडर द्वारा 75 लाख रुपए निकाल लिया गया है, उसकी उपयोगिता की जांच तकनीकी अफसरों को करना था. 11 लाख के गोबर खाद व 25 लाख के रासायनिक खाद पर व्यय बताया गया है. उसका इस्तेमाल क्या पौधों पर हुआ है, उसकी जांच उद्यानिकी को करना था. कार्य स्थल पर लगाये गए फेंसिंग तार व खम्भो की संख्या खर्च के अनुपात में लगा है, या नहीं यह भी देखने का काम तकनीकों अधिकारियों का था. सिंचाई के अभाव 4 हजार से ज्यादा पौधे मर गए. सिंचाई के प्रावधान की जानकारी भी लेना था, पर तकनीकी दल महज 35 मिनट में स्थल का चक्कर लगा कर लौट गई.