विक्रम मिश्र, लखनऊ. उत्तर प्रदेश में अधिकारियों के माननीय शब्द का इस्तेमाल करने पर इलाहाबाद हाइकोर्ट ने सख्त रुख अख्तियार किया है. साथ ही इस शब्द के इस्तेमाल पर हैरानी भी जताई है.

दरअसल इटावा के गोपाल कृष्ण की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने इस मामले में यूपी सरकार से जवाब तलब कर लिया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव से इस बाबत जवाब देने के लिए तलब किया है, कोर्ट ने कड़े शब्दो मे पूछा कि राज्य के सरकारी अधिकारी माननीय कैसे हो सकते हैं? अधिकारी किस प्रोटोकॉल के तहत अपने पद या नाम के साथ माननीय शब्द जोड़ने के हकदार हैं? अदालत ने यूपी के प्रमुख सचिव से इस बारे में हलफनामा दाखिल करने को कहा है.

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आदेश जस्टिस जेजे मुनीर की सिंगल बेंच ने इटावा जिले के कृष्ण गोपाल राठौर की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है. आपको बता दें कि इस मामले में इटावा के डीएम ने कानपुर के कमिश्नर को लिखे पत्र में उनके पद नाम के साथ माननीय शब्द का इस्तेमाल किया था. अदालत ने अपने फैसले में टिप्पणी करते हुए कहा कि अक्सर यह देखने को मिल रहा है कि सरकारी पत्राचार में राज्य के विभिन्न रैंक के अधिकारियों के नाम या पदनाम के साथ माननीय शब्द का इस्तेमाल अक्सर किया जा रहा है.

इस दिन होगी सुनवाई

कोर्ट ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार इंप्लीमेंट को आदेश की कॉपी 24 घंटे के अंदर लखनऊ और इटावा के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के जरिए राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव और इटावा डीएम को भेजने का आदेश दिया है. हाईकोर्ट में अगली सुनवाई 1 अक्टूबर को नए केस के तौर पर की जाएगी.

कौन कर सकता है माननीय शब्द का इस्तेमाल?

राज्य के मंत्री या अन्य महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त होने वाले लोग ही माननीय शब्द का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके अलावा किसी को माननीय शब्द का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं है.

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