उज्जैन। हरसिद्धि माता मंदिर… मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में स्थित है। मां हरसिद्धि को हिंदू धर्म में प्रसिद्ध 51 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि इसी जगह पर देवी सती की कोहनी गिरी थी। शिव पुराण के मुताबिक, जब शिव ने यज्ञ की अग्नि से सती के जलते शरीर को उठाया तो उनकी कोहनी इसी स्थान पर गिरी थी। इस मंदिर में शक्ति का प्रतीक श्री यंत्र भी स्थापित है।

मंदिर का परिचय

देशभर में हरसिद्धि देवी के कई प्रसिद्ध मंदिर है, लेकिन उत्तर प्रदेश के वाराणसी और मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित हरसिद्धि मंदिर सबसे प्राचीन है। 2000 साल पुराने उज्जैन के इस मंदिर की चर्चा पुराणों में भी है। जितना खास यह मंदिर है, उतना ही खास इसकी परंपराएं हैं। हरसिद्धि मंदिर की चार दीवारी के अंदर चार प्रवेश द्वार हैं। मुख्य द्वार पूर्व दिशा की ओर है। द्वार पर सुंदर बंगले बने हुए हैं। बंगले के पास दक्षिण-पूर्व के कोण में एक बावड़ी बनी हुई है, जिसके अंदर एक स्तंभ है। जहां श्रीयंत्र बना हुआ स्थान है।

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यहां भगवती अन्नपूर्णा की एक खूबसूरत प्रतिमा है। मंदिर के पूर्व द्वार से लगा हुआ सप्तसागर रुद्रसागर तालाब है। जिसे रुद्रासागर भी कहा जाता है। रुद्रसागर तालाब के सुरम्य तट पर चारों तरफ मजबूत दीवारों के बीच यह मंदिर बना हुआ है। इसके पीछे अगस्तेश्वर का प्राचीन सिद्ध स्थान है, जो महाकालेश्वर के भक्त हैं।

मंदिर प्रांगण में स्थापित 2 दीप स्तंभ

यूं तो इस स्थल की बहुत सी विशेषताएं है, लेकिन इनमें सबसे खास जो है, वह मंदिर प्रांगण में स्थापित 2 दीप स्तंभ है। इन दीप स्तंभों की ऊंची करीब 51 फीट हैं। इन दीप स्तंभों की स्थापना उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने करवाई थी। नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में उत्सव का माहौल होता है। नवरात्रि पर 9 दिन तक इनमें दीप मालाएं लगाई जाती हैं। भव्य यज्ञ और पाठ के साथ देवी की खास पूजा-अर्चना की जाती है।

उज्जैन में दो शक्ति पीठ, यहां गिरी थी माता सती की कोहनी

उज्जैन में दो शक्तिपीठ है… पहला हरसिद्धि माता और दूसरा गढ़कालिका माता का शक्तिपीठ। पुराणों में मिलता है कि उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर भैरव पर्वत पर मां सती के ओठ गिरे थे। हरसिद्धि मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता है कि यहां सती माता की कोहनी गिरी थी। इसीलिए इस मंदिर को शक्तिपीठों में स्थान हासिल है।

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सम्राट विक्रमादित्य की तपोभूमि

उज्जैन के हरसिद्धि मंदिर को ही सम्राट विक्रमादित्य की तपोभूमि कहा जाता है। सम्राट विक्रमादित्य माता हरसिद्धि के परम भक्त थे। किवदंती है कि हर बारह साल में एक बार वे अपना सिर माता के चरणों में अर्पित कर देते थे, लेकिन माता की कृपा से पुन: नया सिर मिल जाता था।

विक्रमादित्य ने 11 बार चढ़ाया सिर

धार्मिक मान्यता है कि देवी हरसिद्धि को खुश करने के लिए सम्राट विक्रमादित्य ने इस जगह पर 12 साल तक कठिन तप किया और हर वर्ष अपने हाथों में अपने मस्तक की बलि दी थी। बलि देने के बाद हर बार उनका मस्तक वापस आ जाता था। लेकिन 12वीं बार जब मस्तक वापस नहीं आया तो समझा गया कि उनका शासन अब पूरा हो चुका है। उन्होंने 135 वर्ष शासन किया था। आज भी मंदिर के एक कोने में 11 सिंदूर लगे मुण्ड पड़े हैं। कहते हैं ये उन्हीं के कटे हुए मुण्ड हैं।

इसलिए पड़ा हरसिद्धि नाम

स्कंदपुराण में कथा है कि जब एक बार चंड-प्रचंड नाम के दो दावन जबरदस्ती कैलास पर्वत पर प्रवेश करने लगे तो नंदी ने उन्हें रोक दिया। इस दौरान असुरों ने नंदी को घायल कर दिया। इस पर भगवान शिव ने भगवती चंडी का स्मरण किया और शिव के आदेश पर देवी ने दोनों असुरों का वध कर दिया। इससे खुश होकर महादेव ने कहा कि ‘तुमने इन दानवों का वध किया है। इसलिए आज से तुम्हारा नाम हरसिद्धि प्रसिद्ध होगा।’

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दिन में गुजरात और रात में उज्जैन में वास

गुजरात के पोरबंदर से लगभग 48 किलोमीटर दूर मूल द्वारका के पास समुद्र की खाड़ी के किनारे मियां गांव है। खाड़ी के पार पर्वत की सीढियों के नीचे ‘हर्षद माता’ हरसिद्धि का मंदिर है। मान्यता है कि उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य यहीं से आराधना कर देवी को उज्जैन ले गए थे। तब देवी ने विक्रमादित्य से कहा था कि मैं रात के वक्त तुम्हारे नगर में और दिन में इसी स्थान पर वास करूंगी। यही वजह है कि आज भी माता दिन में गुजरात और रात में मध्य प्रदेश के उज्जैन में वास करती हैं।

नहीं चढ़ती बलि, दुनियाभर से पहुंचते हैं श्रद्धालु

इस मंदिर में बलि नहीं चढ़ाई जाती, ऐसा इसलिए क्यों कि यह देवी वैष्णव हैं। वे परमारवंशी राजाओं की कुलदेवी हैं। इस मंदिर में श्रीसूक्त और वेद मंत्रों के साथ पूजा होती है। यहां पर स्तंभ दीप जलाने का सौभाग्य हर किसी को प्राप्त नहीं होता। माना जाता है कि स्तंभ दीप जलाते वक्त मांगी हर मनोकामना पूरी होती है। नवरात्रि के दौरान देश-विदेश से श्रद्धालु माता के दर्शन करने के लिए पहुंचते है। मान्यता है कि हरसिद्धि माता के दर्शन मात्र से सभी दुःख: और तकलीफों से मुक्ति मिल जाती है। नवरात्रि पर इस मंदिर में विशेष हवन और पूजन भी किया जाता है।

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