पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद. जिले के बीहड जंगल में एक ऐसा सरकारी प्रायमरी स्कूल है जहां अपने बच्चों को दाखिला दिलाने के लिए लोगों को लाइन लगाना पड़ता है, स्कूल को आईएसओ सर्टिफाइड 9001 प्रमाणपत्र, राज्य उत्कृष्ट विद्यालय पुरस्कार, वर्ष 2018 में 11 बच्चों का जवाहर नवोदय, एकलव्य और डीपीएस स्कूल में दाखिला, वर्ष 2017 में 8 बच्चों का जवाहर नवोदय, एकलव्य और डीपीएस स्कूल में दाखिला जैसे कई उपलब्धी मिल चुकी है.
गरियाबंद के धवलपुर में संचालित आदिवासी बालक आश्रम के नाम, जवाहर नवोदय, एकलव्य और डीपीएस स्कूल में यहां के बच्चों के दाखिले का सिलसिला आश्रम खुलने के साथ 1998 से जारी है. 998 से संचालित आश्रम से अब तक ना जाने कितने बच्चों का चयन उच्च शिक्षा के लिए बेहतर स्कूलों में हो चुका है. हर साल यहां के बच्चों का चयन अच्छे स्कूलों में होता है, 100 सीटर इस आश्रम में आसपास के एक दर्जन गांव के आदिवासी बच्चे पढ़ाई करते है. उनके गांव में सरकारी स्कूल होने के बावजूद भी वे यहां पढ़ना चाहते है. एडमिशन के समय लोगों को लाइन लगाकर अपने बच्चों का दाखिला करना पड़ता है. आश्रम अधीक्षक टीआर देव के मुताबिक अपने शिक्षकों के साथ मिलकर वे बच्चों को इस लायक बनाते है.
शिक्षकों की मेहनत का असर यहां के बच्चों पर साफ नजर आता है, अधिकांश बच्चों से जब पूछा गया कि वे बड़े होकर क्या बनना चाहते है तो उनका जवाब था कि वे बड़े होकर अच्छा इंसान बनना चाहते है. शायद ये जवाब शहर के बड़ों स्कूलो में पढ़ने वाले बच्चे भी नहीं दे पाएंगे. बच्चों का सेंस ऑफ ह्यूमर भी कम नहीं है.
ऐसा नहीं है कि यहां मैरिट के आधार पर होनहार बच्चों को दाखिला दिया जाता हो, बल्कि गांव के आदिवासी बच्चों को पहले और दाखिला पाओ के आधार पर दाखिला दिया जाता है, फिर शिक्षक अपनी मेहनत से इन बच्चों को तरासकर इस लायक बनाते है. यहां पढें बच्चे आज अच्छे स्कूल कॉलेजो में तो पढ़ाई कर ही रहे है कुछ अच्छी नौकरी भी कर रहे है. ये बताते हुए शिक्षक बंसीलाल यादव फुले नहीं समाए.
एक तरफ जहां प्रदेशभर के सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का स्तर किसी से छुपा नहीं है वहीं दूसरी तरफ टीआर देव जैसे शिक्षकों की बदौलत धवलपुर जैसे स्कूल भी मौजूद है. मतलब साफ है यदि दूसरे स्कूलों के शिक्षक भी मेहनत करे तो वो दिन दूर नहीं जब प्रदेश का हर सरकारी स्कूल धवलपुर स्कूल की तरह आईएसओ होगा और लोग अपने बच्चों के दाखिले के लिए किसी प्राईवेट स्कूल की बजाय किसी सरकारी स्कूल के बाहर लाइन लगाकर खड़े नजर आएंगे.