वाराणसी. बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी की सभ्यता बेहद पुरानी है. काशी को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है. जहां सभी भगवान विराजमान हैं. इस नगरी में कई मंदिर हैं. सभी ऐतिहासिक और वास्तुकला के बेजोड़ नमूने हैं. विशेषकर काशी विश्वनाथ मंदिर वाले क्षेत्र में कई ऐसे मंदिर का दर्शन आपको हो जाएगा जिनकी निर्माण शैली अतुलनीय है. ऐसा ही एक मंदिर है जो कि मां काली को समर्पित है. जिसे काशीराज काली मंदिर के नाम से जाना जाता है.

ये मंदिर काशी के गोदौलिया चौक से महज चंद कदमों की दूर पर है. काशी नरेश द्वारा निर्मित 200 सौ साल पुरानी संपत्ति, शाही परिवार की निजी मंदिर थी. परिसर का विस्तृत नक्काशीदार द्वार उस समय की वास्तुकला की महारत का उदाहरण है. ऐसा बताया जाता है कि वर्तमान में जो मंदिर दिख रहा है वह नकली है, जो अपने बगल में असली मंदिर को छिपाए हुए है. इसके बारे में कई किंवदंतियां हैं. कहा जाता है कि जब भी राजमिस्त्री मूल मंदिर में फर्श या गुंबद जोड़ने की कोशिश करते थे तो दीवारें जमीन में धंस जाती थीं. उन्होंने कई बार गुंबद को जोड़ने की कोशिश की गई, लेकिन वे असफल रहे. इसलिए उन्होंने इसे वैसे ही छोड़ने और इसके ठीक सामने एक और गुंबद बनाने का फैसला किया.

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देवी साधक से प्रभावित हुए थे काशी नरेश

एक अन्य कथा है कि वर्तमान पुजारी परिवार की पांच पीढ़ी पहले दामोदर झा भगवती के साधक थे. साल 1840 में तीर्थाटन करते हुए वे रामनगर पहुंचे. यहां पर सूखा पड़ा हुआ था. तत्कालीन महाराज ईश्वरी नारायण सिंह से लोगों ने भगवती साधक के नगर में आने की सूचना दी. व्यथा-कथा सुनने पर पं. दामोदर झा ने बारिश होने का भरोसा तो दिया ही साथ ही समय भी बता दिया. उनके बताए मुताबिक बारिश भी हो गई. इससे प्रभावित हुए महाराज ने उत्तराधिकारी से संबंधित अपनी चिंता साधक को बताई. इस पर उन्होंने कहा कि-घर में पता करिए संतान है. पूछताछ करने पर पता चला कि छोटे भाई की पत्नी गर्भ से हैं.

बालक के जन्म के बाद राजपरिवार ने की थी माता की स्थापना

इससे महराज इतना प्रभावित हो गए कि उन्होंने भगवती साधक को रामनगर में ही ठहर जाने का आग्रह किया. जिसके बाद देवी साधक को गोदौलिया पर पहले से बन रहे मंदिर में ठहराया गया. परिवार में बालक का जन्म होने के बाद मंदिर में भगवती की स्थापना की गई. फिलहाल दामोदर झा की पांचवीं पीढ़ी के पं. अमरनाथ झा मंदिर में पूजन अर्चन करते हैं. दर्शन पूजन के लिए राज परिवार के लोग अभी भी यहां आते हैं.

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गर्भगृह के बीच भगवती काली की प्रतिमा विराजमान है. इसके अलावा गर्भगृह के अंदर शिवलिंग भी स्थापित है. भगवान गणेश को लालाटबिंब पर स्थापित किया गया है. गर्भगृह में तीन दरवाजे हैं, लेकिन केवल दाईं ओर का दरवाजा ही खोला जा सकता है. गर्भगृह के दाहिने प्रवेश द्वार के बाहर भगवान शिव का वाहन नंदी है.

एक स्तंभ बनाने में लगे थे 6 महीने

गर्भगृह के दोनों ओर दो गोमुख मौजूद हैं, जिनके माध्यम से अनुष्ठानों के दौरान चढ़ाया जाने वाला दूध, पानी गर्भगृह से बाहर लाया जाता है. गर्भगृह के पीछे बाईं ओर मौजूद भित्तिस्तंभ के निचले हिस्से पर एक टूटा हुआ कीर्तिमुख मौजूद है. इस मंदिर में पंचदेव की स्थापना के साथ ही शिवपरिवार समेत नंदी को भी विराजमान कराया गया था. निर्माण से संबंधित शिलापट्ट भी परिसर में आज भी हैं. कहा जाता है इसके एक-एक स्तंभ बनाने में 6 मीने का समय लगा था.

असली मंदिर को छिपाना चाहते थे राजा

अन्य श्रुतियों के अनुसार राजा शिवलिंग को सुरक्षित रखने के लिए आक्रमणकारियों से असली मंदिर को छिपाना चाहते थे. इसलिए, उन्होंने असली शिवलिंग को एक छोटे से कमरे में रखने का फैसला किया और उसके ठीक सामने एक विस्तृत कलाकृति बनवाई. जो कोई भी यहां आता है, वो शायद ही दूसरे मंदिर पर ध्यान देता हो. इसके पीछे छोटा सफेद मंदिर है जो गौतमेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है.

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हिंदी और संस्कृत में लिखे शिलालेखों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण तत्कालीन राजा प्रभु नारायण सिंह की मां ने संवत् 1843, फालफुन सादी 5, रविवार को करवाया था. मंदिर में पिछले कई वर्षों में कई जीर्णोद्धार हुए हैं, इसके बाद भी मंदिर अपने प्राचीन आकर्षण और भव्यता को बरकरार रखे हुए है.

काशी नरेश की संपत्ति

चूंकि काशीराज काली मंदिर, काशी नरेश (राजा) की निजी संपत्ति है. लिहाजा बिना अनुमति के यहां पर घूमना या पुलिस से लिखित अनुमति के बिना व्यावसायिक सैर करना दंडनीय अपराध है.