विक्रम मिश्र, लखनऊ. महराजगंज जिले में स्थित लेहड़ा देवी मंदिर का ऐतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व है. महाभारत काल में पांडवों ने यहीं पर वक्त गुजारा था. फरेंदा-बृजमनगंज मार्ग पर आद्रवन जंगल के पास यह मंदिर है. मंदिर के बगल में बहने वाले प्राचीन पवह नदी का विशेष महत्व है. मान्यता है कि यहां मौजूद देवी की पिडी पर माथा टेकने वालों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं. मंदिर लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है. अगल-बगल के जनपदों के साथ ही पड़ोसी राज्य बिहार और मित्र राष्ट्र नेपाल से भी बड़ी संख्या में लोग श्रद्धा के साथ शीश नवाते हैं.
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सदियों पुराना है लेहड़ा देवी का इतिहास
लेहड़ा देवी मंदिर में माता के दर्शन का पौराणिक महत्व भी है. किवदंतियों के अनुसार मंदिर के आस पास पहले घना जंगल हुआ करता था. जंगल में ही मनोरम सरोवर के किनारे माता की पिडी स्थापित हुई थी. कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने अपने अज्ञातवास का समय यहीं व्यतीत किया था. इसी सरोवर के किनारे युधिष्ठिर ने यक्ष के प्रश्नों का जवाब देकर अपने भाइयों की जान बचाई थी. इस मंदिर की स्थापना द्रौपदी के साथ पांडवों ने की थी. चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इस मंदिर का उल्लेख अपने यात्रा वृतांत में किया है.
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मंदिर के मुख्य पुजारी हरीश चंद्र ने लल्लूराम डॉट कॉम को बताया कि यहां पर साल भर श्रद्धालु अपनी मनोकामना को लेकर आते हैं, जबकि उनकी इच्छाओं को माता पूरी भी करती है. उन्होंने बताया कि समय-समय पर माता अपने भक्तों की परीक्षा भी लेती है. सिद्धार्थनगर से लगे इस मंदिर में नेपाल बिहार उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों से भी लोग आते हैं.
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