गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव (सद्गुरु) के ईशा फाउंडेशन के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट द्वारा दिए गए जांच के आदेश पर रोक लगा दी. फाउंडेशन ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी, जिसके परिणामस्वरूप मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज सभी आपराधिक मामलों का विवरण देने का निर्देश दिया था.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हम हाईकोर्ट द्वारा पुलिस को दिए गए निर्देशों पर रोक लगाते हैं.” यह आदेश आया जब वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने इस मामले का CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने उल्लेख किया. रोहतगी ने कहा, “यह धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़ा है. यह बहुत ही गंभीर और तात्कालिक मामला है. ईशा फाउंडेशन से जुड़ा है, जहां सद्गुरु के लाखों अनुयायी हैं. मौखिक आरोपों के आधार पर हाईकोर्ट ऐसी जांच शुरू नहीं कर सकता.”
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यह मामला सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस. कमराज की एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर आधारित था, जिसमें कमराज ने आरोप लगाया कि उनकी दो “शिक्षित बेटियां”, 42 और 39 वर्ष की, कोयंबटूर के ईशा योग केंद्र में रहने के लिए “ब्रेनवॉश” किया गया था. कमराज ने कोर्ट को बताया कि फाउंडेशन के अधिकारियों ने उनकी बेटियों को उनके परिवार से किसी भी तरह का संपर्क बनाए रखने की अनुमति नहीं दी.
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मद्रास हाईकोर्ट नेफाउंडेशन के खिलाफ कई आपराधिक शिकायतों को देखते हुए मामले को आगे की चर्चा के योग्य बताया. कोर्ट नेइस बात पर भी गंभीर संदेह व्यक्त किया कि वासुदेव ने अपनी बेटी को विवाह कर उसे एक सुखी जीवन दिया है, लेकिन वे अन्य महिलाओं को सांसारिक जीवन छोड़ने और संन्यास लेने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. इस संदेह के कारण फाउंडेशन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
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