रायपुर. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राजिम कुंभ का नाम बदलकर राजिम माघ पुन्नी मेला करने की पीछे वजह बताते हुए कहा कि पुन्नी मेला हमारी सांस्कृतिक विरासत है. ये छत्तीसगढ़ की मेहनतकश जनता का उत्सव है. सदियों से हमारी समृद्ध लोक संस्कृति और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक रहा है. इस पर तत्कालीन भाजपा सरकार ने तब हमला किया जब उसने तमाम धार्मिक, पौराणिक मान्यताओं को दरकिनार करते हुए इसे कथित राजिम कुंभ में परिवर्तित कर दिया था.
नाम परिवर्तन की गैर जरूरी राजनीति कर जनता के असली सवालों से ध्यान भटकाने का काम भाजपा ने पहली बार नहीं किया है. भारतीय जनता पार्टी का इतिहास इसी बात से भरा है. भाजपा ने लोकसंस्कृति को नष्ट कर कृत्रिम सांस्कृतिक पहचान खड़ा करने का काम किया था, और यह छत्तीसगढ़ की अस्मिता पर हमला था. हमारे मेले, मड़ई, लोकोत्सव, लोक शिल्प ही तो हमारी सांस्कृतिक पहचान है.
कुम्भ तो इस भारत देश का और हिंदुओं की आस्था का महापर्व है. महज भावनाओं की और धर्म की राजनीति करने में माहिर भाजपा ने इस नाम का इस्तेमाल कर छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति की पहचान को मिटाने की कोशिश की थी. केवल इतना ही नहीं इस कथित कुम्भ मेले के नाम पर तत्कालीन भाजपा सरकार हर साल करोड़ों रुपयों का अनुत्पादक व्यय करती रही है और जनता के धन को उस पवित्र नदी की रेत में बहाती रही है.
अब कांग्रेस की सरकार ने इस लोकोत्सव को उसकी गरिमा ही नहीं लौटाई है, बल्कि मेला-मड़ई की छत्तीसगढ़ की हजारों सालो से चली आ रही समृद्ध गौरवशाली परंपरा को सहेजने का भी महत्वपूर्ण काम किया है. इस बात के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और गृह, लोकनिर्माण एवं कला संस्कृति मंत्री ताम्रध्वज साहू का आभार व्यक्त करते है, जिन्होंने छत्तीसगढ़ की जनता की भावनाओं के अनुरूप यह फैसला किया. साहित्यकारों, कलाकारों और संस्कृति से जुड़े लोगों ने राजिम कुंभ का नाम बदलकर राजिम पुन्नी मेला करने का स्वागत किया है.