Shardiya Navratri 2024: नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है. यह देवी दुर्गा का तीसरा रूप है, जो शौर्य, पराक्रम और साहस का प्रतीक माना जाता है. मां चंद्रघंटा के माथे पर अर्धचंद्र सुशोभित है. जिससे इसका नाम पड़ा. वह दस हाथों में हथियार रखती है और शेर की सवारी करती है, जो उसकी युद्ध कौशल और शांति के संतुलन का प्रतिनिधित्व करती है.

यहां मां चंद्रघंटा का मंदिर

प्रयागराज उत्तर प्रदेश में मां देवी का एक प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर है. यह इलाका बहुत व्यस्त है. यह माँ क्षेमा माई का अत्यंत प्राचीन मंदिर है. कहा जाता है कि इस मंदिर का उल्लेख पुराणों में विशेष रूप से मिलता है. यहां मां दुर्गा मां चंद्रघंटा के रूप में विराजमान हैं. यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां देवी के सभी 9 रूप एक ही स्थान पर पाए जाते हैं. मान्यता है कि मां के दर्शन मात्र से भक्तों का शारीरिक और मानसिक तनाव दूर हो जाता है. नवरात्रि के नौ दिनों में इस मंदिर में सुबह से ही भक्तों का तांता लगा रहता है.

देवी का नाम चंद्रघंटा क्यों पड़ा?

देवी मां का नाम ‘चंद्रघंटा’ पड़ने के पीछे की वजह बेहद खास है. वास्तव में, इसका सिर आधे चाँद के घंटे के आकार का है. ऐसा माना जाता है कि उनका शरीर सोने की तरह चमकता है. मां की दस भुजाएं हैं, जो अस्त्र-शस्त्रों से सुशोभित हैं और उनकी सवारी सिंह है.