Akshara Devi Mandir: आमतौर पर मां आदिशक्ति देवी मंदिरों में मूर्ति या पिंडी के रूप में ही विराजमान होती हैं. लेकिन शक्तिपीठ मां अक्षरा देवी मंदिर के गर्भगृह में मूर्ति के बजाय मां प्रणवाक्षरा का साढ़े तीन अक्षर का यंत्र शिला पर विराजमान है. इसी कारण यहां केवल बौद्धिक अध्ययन की अनुमति है. देवी यंत्र के रूप में देवी की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. जहां देवी अपने यंत्र रूप में विराजमान हैं. यहां किसी उपलब्धि की आवश्यकता नहीं है. यह स्थान स्वतः सिद्ध है. श्री दुर्गा सप्तशती के तंत्रोक्त रात्रिसूक्त में परमपिता ब्रह्मा ने अक्षरा देवी से प्रार्थना की है. नवरात्र के दौरान प्राचीन देवी मंदिरों का महत्व बढ़ जाता है.

आज हम ऐसे ही एक सिद्ध पीठ मंदिर अक्षर पीठ के बारे में बात करेंगे, जो उत्तर प्रदेश के जालौन के सैदनगर में बेतवा नदी के तट पर स्थित है.आमतौर पर देवी मंदिरों में देवी मां आदिशक्ति की मूर्ति या पिंडी के रूप में मौजूद होती हैं, लेकिन अक्षरा देवी मंदिर के गर्भगृह में देवी मां किसी मूर्ति के बजाय साढ़े तीन अक्षर के यंत्र के रूप में मौजूद हैं. एक शिलाखंड पर शिलालेख. इस मंदिर की खास बात यह है कि इस स्थान पर नारियल, शराब, तिल और जौ चढ़ाना वर्जित है. मंदिर के अंदर कोई तेल का दीपक नहीं जलाया जाता है और न ही नारियल चढ़ाया जाता है.देवी मां के सामने तिल और जावा का हवन नहीं किया जाता.

वैसे तो जालौन में कई सिद्ध पीठ स्थान हैं, लेकिन सैदनगर गांव में बेत्रवती के तट पर स्थित अक्षर पीठ का शक्ति सिद्ध पीठ के रूप में सर्वोत्तम महत्व है. इस स्थल की प्राचीनता का सटीक अनुमान लगाना संभव नहीं है, लेकिन उपलब्ध पत्थर की पट्टियों के अनुसार यह एक हजार वर्ष से भी अधिक पुराना ज्ञात होता है. ब्रिटिश काल में लिखे गए कई शोध ग्रंथों के अनुसार ईसा पूर्व यहां चेदि वंश का शासन था.

ब्रह्माण्ड में प्रथम लिपि की उत्पत्ति इसी से हुई

यह शब्द अक्षर उस माता की आराधना स्थली है, जहां घोर विपत्ति के बाद भी, ब्रह्मा के निष्क्रिय हो जाने पर भी वह ब्रह्म शक्ति की सहायता से ही एकोम बहुम्या की कल्पना करती है. उसी कल्पनाकार को वर्णमाला के प्रथम अक्षर का रूप दिया गया. यह शक्ति अक्षर ही इति अक्षर है. इसका मतलब है कि माँ अक्षरा दुनिया का निर्माण करती हैं, इसलिए दुनिया की सभी चीजें माँ के बेटे और बेटियों के लिए ही रहनी चाहिए.

उरई मुख्यालय से 40 किमी की दूरी पर स्थित है

बेतवा नदी के तट पर सैदनगर में स्थित शक्तिपीठ मां अक्षर धाम का मंदिर जालौन के जिला मुख्यालय उरई से 40 किमी, कानपुर-झांसी रेलवे लाइन पर एट जंक्शन से लगभग 12 किमी दूर है. पूर्व दिशा में कोटरा रोड पर कुरकुरु गांव से एक लिंक मार्ग जुड़ा हुआ है.मंदिर तक पक्की सड़क है. इस स्थान तक किसी भी वाहन से आसानी से पहुंचा जा सकता है.यह जिले का सर्वोत्तम आध्यात्मिक-प्राकृतिक पर्यटन स्थल है.