अनूप दुबे, कटनी (ढीमरखेड़ा)। मध्य प्रदेश के कटनी जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर ढीमरखेड़ा तहसील के पाली गांव के जंगलों के बीच स्थित प्राचीन बीरासन माता मंदिर क्षेत्र वासियों के लिए आस्था का केंद्र है। मंदिर का इतिहास कलचुरी शासनकाल काल से जुड़ा है। मंदिर में दूर-दूर से भक्त माता के दर्शन करने आते हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर भक्त उपवास रखकर दुर्गा सप्तशती का पाठ करवाकर बच्चों के मुंडन, हवन, भंडारा, कन्या पूजन, पाठ और अखंड ज्योत जलाते हैं
40 वर्षों से लगातार मंदिर प्रांगण में शारदीय नवरात्रि के पावन अवसर पर प्रतिमा की स्थापना करवाई जाती है। प्राचीन परंपरा के अनुसार नवमी तिथि की रात को कांटों के झूले में बैठकर पंडा भक्तों की फिराद करना है फिर, रात 12 बजे के बाद माता की महाआरती होती है। देर रात भक्तों की कतार लगी रहती है।
पंडा पैरों में नुकीले किलों की खड़ाऊं पहनकर लोहे की जंजीर लगे गुर्दे से अपने शरीर पर मारता है। मुंह में लोहे का बाना छेड़कर हाथ में तलवार लिए कांटो के झूले में बैठकर भक्तों की समस्या सुनकर उन्हें उपाय बताता है। नजारा देखकर ही माता की शक्ति का एहसास कर देता है।
लल्लूराम डॉट कॉम की टीम रात 12 बजे मंदिर पहुंचकर माता की महाआरती में शामिल लोगों से मंदिर के इतिहास के संबंध में जानकारी ली। जिसमें पता चला कि, माता पहले भक्तों को कर्ज देती थी। तो किसी को चांदी के सिक्के, तो किसी को सौ रुपए के नोट। मंदिर के आसपास खुदाई में कलचुरी शासन काल के मंदिर के गुंबज और अवशेष मिलने के कारण मंदिर के इतिहास को कलचुरी शासन काल से जोड़ा जाता है।
इसकी पुष्टि पुरातत्व विभाग के द्वारा भी की गई है। माता की प्रतिमा खुदाई के दौरान जमीन से निकलने की बातें भी लोग बताते हैं। प्रतिमा की बनावट जिस प्रकार से है उसे देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है की प्रतिमा प्राचीन समय की है। पहले घने जंगलों के बीच माता का स्थान था देर रात पंडा से अपनी फिराद कटवाने के लिए सैकड़ों की संख्या में भक्त उपस्थित रहे।
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