WPI Inflation September: आज यानी 14 अक्टूबर को सितंबर महीने के थोक महंगाई के आंकड़े जारी होंगे. विशेषज्ञों के मुताबिक सितंबर में इसमें बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है. इससे पहले अगस्त में थोक महंगाई दर घटकर 1.31% पर आ गई थी. जुलाई में यह 2.04% पर थी.
आम आदमी पर WPI का असर
थोक महंगाई में लंबे समय तक बढ़ोतरी का सबसे अधिक उत्पादक क्षेत्रों पर बुरा असर पड़ता है. अगर थोक कीमतें बहुत लंबे समय तक ऊंची बनी रहती हैं तो उत्पादक इसका बोझ उपभोक्ताओं पर डाल देते हैं. सरकार WPI को टैक्स के जरिए ही नियंत्रित कर सकती है.
उदाहरण के लिए, कच्चे तेल में तेज बढ़ोतरी की स्थिति में सरकार ने ईंधन पर उत्पाद शुल्क में कटौती की थी. हालांकि, सरकार टैक्स में एक सीमा तक ही कटौती कर सकती है. मेटल, केमिकल, प्लास्टिक, रबर जैसे फैक्ट्री से जुड़े सामान का WPI में वजन ज्यादा होता है.
WPI Inflation September थोक महंगाई दर के तीन हिस्से होते हैं:
प्राथमिक सामान जिनका वजन 22.62% होता है. ईंधन और बिजली का भार 13.15% है और विनिर्मित उत्पादों का भार सबसे ज़्यादा 64.23% है. प्राथमिक वस्तुओं में भी चार घटक होते हैं:
- अनाज, गेहूं, सब्ज़ियाँ जैसे खाद्य पदार्थ
- तिलहन को गैर-खाद्य पदार्थों में शामिल किया जाता है
- खनिज
- कच्चा पेट्रोलियम
मुद्रास्फीति कैसे मापी जाती है?
भारत में मुद्रास्फीति दो तरह की होती है. एक खुदरा और दूसरी थोक मुद्रास्फीति. खुदरा मुद्रास्फीति दर आम ग्राहकों द्वारा चुकाई गई कीमतों पर आधारित होती है. इसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) भी कहते हैं.
दूसरी ओर, थोक मूल्य सूचकांक (WPI) का मतलब है थोक बाज़ार में एक व्यवसायी द्वारा दूसरे व्यवसायी से ली जाने वाली कीमतें. मुद्रास्फीति को मापने के लिए अलग-अलग वस्तुओं को शामिल किया जाता है. उदाहरण के लिए, थोक मुद्रास्फीति में विनिर्मित उत्पादों की हिस्सेदारी 63.75% है.
खाद्य जैसी प्राथमिक वस्तुओं की हिस्सेदारी 22.62% और ईंधन और बिजली की हिस्सेदारी 13.15% है. वहीं, खाद्य एवं उत्पाद खुदरा मुद्रास्फीति में 45.86%, आवास 10.07% तथा ईंधन सहित अन्य मदों का भी योगदान है.
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