विक्रम मिश्र, लखनऊ. जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी. समाजवादी प्रवर्तक जय प्रकाश नारायण की पंक्तियां हर उस सियासदान को याद होगी, जो यूपी की राजनीति के स्तर को टटोलता हो. बस जेपी की लाइन अब हर सियासी दल के लिए महत्वपूर्ण हो गई है. यूपी की दलित आबादी में जाटवों-दलितों की संख्या 55 प्रतिशत से अधिक है. पूर्व में ये बहुजन समाज पार्टी के वोटर थे. अब वर्तमान में इस जाति के ज़्यादातर मतदाता आजाद समाज पार्टी के प्रभाव में हैं.
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उपचुनाव की नौ सीटों में से दो विधानसभाओं पर जाटव बिरादरी के प्रत्याशी उतारकर सपा ने यह स्पष्ट कर दिया कि जाटव की समस्याओं का स्थाई निदान समाजवादी पार्टी ही कर सकती है, जबकि पीडीए के तहत अन्य जातियों की तरह ही जाटव जाति भी उसकी प्राथमिकता में है. सूत्रों की मानें तो गाजियाबाद और खैर में टिकट देने के साथ ही पार्टी के पदाधिकारियों से जाटव मतदाताओं के बीच सघन जनसंपर्क करने के लिए कहा गया है, जिससे जाटव समाज में समाजवादी पार्टी की पैठ बन सके.
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27 से पहले सेमीफाइनल
कहने को तो 9 सीट पर उपचुनाव हो रहा है, लेकिन ये 2027 विधानसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है. इस चुनाव के नतीजे और वोट बैंक के धागों में हर जाति का समन्वय ही साल 2027 में होने वाले विधानसभा आम चुनाव में सियासी दलों के लिए प्रोटीन का काम करेगा. इसीलिए भाजपा आने हरियाणा प्रयोग को यूपी में लागू कर रही है. बसपा अपने दलित वोटरों को फिर से लामबंद करने की फिराक में है तो समाजवादी पार्टी बसपा के वोटरों को झटककर अपने लाल झंडे के नीचे लाने को बेचैन है.
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