रायपुर- हाल के दिनों में आदिवासियों को लेकर यदि सबसे ज्यादा चर्चा किसी मुद्दे पर होती रही है, तो वह वन अधिकार कानून को लेकर रही है. छत्तीसगढ़ में यह सवाल उठता रहा है कि कानून का सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं किया जा रहा है. आदिवासी आज भी अपनी जमीन को लेकर लंबी लड़ाई लड़ रहे हैं. सिविल सोसाइटी के लोगों की आई कई रिपोर्ट में भी यह तथ्य सामने आते रहे, बावजूद इसके हालात बदलने वाली कोई तस्वीर नजर नहीं आई. जरूर सरकारी आंकड़ों में हालात बेहतर होते दिखे. राज्य में कांग्रेस सरकार आने के बाद अब इस दिशा में पहल होती नजर आ रही है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सिविल सोसाइटी से जुड़े लोगों की मौजूदगी में वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन को लेकर एक सार्थक चर्चा का दौर शुरू किया है. उन्होंने कहा है कि अब तक पिछली सरकार का रवैया इसे लेकर उपेक्षापूर्ण रहा है, लेकिन अब तस्वीर बदलनी है.

बुधवार को नया रायपुर के संवाद आडिटोरियम में भूपेश सरकार ने जब सिविल सोसाइटी से जुड़े लोगों के बीच वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार विभागों के अधिकारियों के साथ बातचीत की, तो लोगों को लगने लगा कि राज्य की एक बड़ी आबादी की उस जरूरत को पूरा करने की दिशा में सरकार कदम आगे बढ़ा रही है, जिसे अब तक या तो नजरअंदाज कर दिया गया या फिर राजनीतिक फायदे के लिए इस कानून का इस्तेमाल किया जाता रहा. सरकार ने अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी अधिनियम के क्रियान्वयन की समीक्षा और परिचर्चा का आयोजन किया, जिसमें कानून के प्रावधानों पर गंभीर रायशुमारी हुई. इस दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि- फारेस्ट राइट एक्ट यूपीए सरकार ने बनाया था. इसका क्रियान्वयन छत्तीसगढ़ में बेहतर ढंग से नहीं किया जा सका. इसे लेकर लोगों में नाराजगी थी. जमीन का कब्जा कहीं और था, नक्शा कहीं और का बनाया गया. सामुदायिक पट्टा का वितरण हुआ ही नहीं. ऐसी कई विसंगतियां थी. ये सारी बातें थी, जिसे लेकर सिविल सोसाइटियों के लोग लंबी लड़ाई लड़ रहे थे, हम भी अपने स्तर पर यह लड़ाई लड़ रहे थे. अब जब सत्ता में आये हैं तो सब मिलजुलकर समाधान ढूंढ रहे है. सभी अधिकारी, संबंधित विभाग के मंत्री और आदिवासियों के अधिकारियों के लिए लड़ रहे लोगों के साथ बैठ रहे हैं. भूपेश बघेल ने कहा कि वन अधिकार कानून को लेकर आदिवासी विभाग पहले से ही नोडल एजेंसी था, लेकिन विभाग उदासीन बना रहा. उन्होंने कहा कि अब कानून के क्रियान्वयन से जुड़ी आने वाली शिकायतों के निराकरण के लिए. अनुभाग समिति, जिला समिति और राज्य समिति बनाई जाएगी.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी हम सबकी है. हम सबका उद्देश्य एक ही है कि कानून का सही मायने में पालन हो. हजारों सालों से जंगलों में रहते आए उन आदिवासियों को अधिकार मिले, जिन्होंने कभी पटवारी के पास जाकर रिकॉर्ड दुरुस्त नहीं कराया. यह उनका अपराध नहीं है. जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है ये महसुस किया गया कि उन्हें उनका अधिकार मिलना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम को अभियान की तरह लेना है लेकिन हड़बड़ी में कोई काम नहीं करना है. जमीन का मामला है. रिकॉर्ड गलत हुआ तो सुधारने में सालो लग जाते हैं.जितना कब्जा है उतने का अधिकार दिया जाना चाहिए. अब तक शासन का उपेक्षा पूर्ण रवैया रहा है. जंगल को जंगल में रहने वाले बेहतर ढंग से बचा सकते हैं. भूपेश ने कहा कि प्री मेटिव ट्राइब के मामले में सो मोटो काम करने होंगे.

भूपेश बघेल ने कहा कि मैं नहीं समझता की ट्राइबल या वन विभाग अब अतिक्रमण पर रोक लगा पाने में सक्षम है. आदिवासी ही जंगल को बखूबी बचाएंगे. उन्होंने कहा कि इस मामले में एक विवाद आ रहा है कि वन प्रबंधन समिति देखे या फिर ग्राम सभा देखे. मेरा मानना है कि ये संक्रमण काल है इसे ठीक करने में समय लगेगा. अधिकार किस प्रकार दिया जाए इसे बैठकर चर्चा कर लेंगे. आदिम जाति और वन विभाग लड़े पड़े है. वन विभाग कब्जा छोड़ना नहीं चाहता और आदिम जाति इस मामले में उदासीन है, लेकिन अब काम करना है. उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि  नेपाल में पिछले दो दशक से 30 हजार समूह काम कर रहे है, वहां 6 फीसदी जंगल की वृद्धि हुई है. उन्होंने करके दिखाया है. हम सबको बेहतर छत्तीसगढ़ बनाना है. यहां के लोगो को अधिकार सम्पन्न बनाना है.

बस्तर जाने से डरते हैं- भूपेश

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि हालात कुछ इस कदर बना दिए गए हैं कि हम रायपुर से बस्तर जाने में डरते हैं, लेकिन दिल्ली में बैठा आदमी रायपुर आने में डरता है. ये हालात इसलिए बने, क्योंकि आदिवासियों के अधिकारों को छिनने का काम हुआ था. अब इन हालातों को बदलना है. एक्ट में स्पष्ट प्रावधान है कि 13 दिसम्बर 2005 के पहले का कब्जा जिनका है, जो तीन पीढ़ी से रहा रहा हो. ऐसे दावों को अब तक निरस्त कर दिया जाता रहा, लेकिन अब इन्हें उनका हक देना है. लेकिन हड़बड़ी में किसी को कोई काम करने की जरूरत नहीं है. इत्मीनान से काम करें कानून का ठीक ढंग से पालन करना है. दबाव में कोई काम नहीं करना है. उन्होंने अधिकारियों से कहा कि सिविल सोसायटी के लोग आपके विरोधी नहीं है. इनकी मदद लेकर आप सब काम करिए. जब बैठना शुरू करेंगे तो सारी समस्या खत्म हो जाएगी

हम इस चर्चा के लिए तरह रहे थे- राजगोपाल

एकता परिषद के संरक्षक राजगोपाल ने कहा कि हम कितने वर्षों से तरस रहे थे कि ऐसी सार्थक चर्चा की शुरूआत हो. दरअसल ये सरकार का नया चेहरा है. ये अच्छी पहल है. वन अधिकार कानून को लेकर पीएम ने माफी नही मांगी लेकिन ये माना की इस कानून को बनाने में गलती हुई है. अब हम सुधार की दिशा में आगे बढ़ेंगे. छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के बारे में सोच रहे है तो महात्मा गांधी किन150 वीं वर्षगांठ पर किया जा रहा सबसे सुंदर काम है. हम यहां मिलकर काम करने के लिए माहौल बनाएंगे. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी यह कहते हैं जहां जहां लोगों को चोट पहुँची है वहां बैठकर बात करने की जरूरत है. अब संवाद के एजेंडा को मजबूत करें और मिलजुलकर काम करें. राजगोपाल ने कहा कि  1970 में जब मैं पहली बार छत्तीसगढ़ आया तब लोग कहते थे दुनिया की सबसे शांत जगह है लेकिन अब कहते है कि दुनिया का सबसे अशांत जगह है. आखिर छत्तीसगढ़ में ऐसा क्या हुआ? उन्होंने कहा कि जहां ग्रीवासेस है और उसे सुनने वाला कोई नहीं है वहां कॉन्फ्लिक्ट होगा ही. बात नहीं सुनने की वजह से हमने इसे वायलेंट इलाके में बदल दिया. वायलेंट इलाके से शांत इलाके में बदलने के लिए संवाद जरूरी है.

पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टी एस सिंहदेव ने कहा कि कान्सटीट्यूशनल राइट को लागू नहीं करने की वजह से पत्थलगढ़ी जैसे मामले सामने आते हैं. कई गांवों में हम जा नहीं पा रहे हैं. कानून में जिन प्रावधानों का उल्लेख है, उन्हें भी हम ठीक ढंग से लागू नहीं कर सके. इन सब विषयों पर सार्थक चर्चा के जरिए ही समाधान ढूंढा जा रहा है. वन मंत्री मो.अकबर ने कहा कि पूरे राज्य से इस प्रकार की शिकायतें आती है कि कुछ स्थानों पर वन अधिकार पत्र मिलने के बाद भी लोग काबिज नहीं है. कुछ ऐसी शिकायतें भी है कि जमीन का कब्जा कहीं और है रहते कहीं और हैं. यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए की जिन्हें पात्रता है उन्हें कानूनी अधिकार मिले. उन्होंने कहा कि फॉरेस्ट राइट एक्ट से जुड़ा प्रश्न उसके इम्लपिमेन्टेशन का है. जिन्हें वन अधिकार पत्र दिया भी गया है उन्हें कब्जा शुदा जमीन के अधिकार नहीं दिए गए हैं. कई ऐसे है जिन्हें पत्र दिया गया उनके मकान के नाम उल्लेख नहीं है. जाति का उल्लेख नही किया गया, धारा 3 (1) के बेहतर क्रियान्वयन की जरूरत है. मो.अकबर ने कहा कि  मेरी अपनी विधानसभा में वन भूमि को नजूल भूमि में बदल दिया गया लेकिन उसकी वजह पूछने पर कोई नहीं बता पाया. नगरीय निकाय क्षेत्र में कानून और बनते रहेंगे. इसे लेकर अराजकता की स्थिति भी बनती गई. उन्होंने कहा कि कड़ाई से कानून का पालन होना चाहिए, जो बेहद जरूरी है.

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा कि वन अधिकार कानून इस देश में आदिवासी और अन्य परंपरागत वनवासियों के साथ हुए अन्याय को सुधारने के लिए बनाया गया है, लेकिन रमन सरकार में इस कानून का पालन प्राथमिकता में नहीं रहा. कानून के विपरित राज्य सरकार की कार्यवाहियां रही. सबसे बुरी स्थिति यह रही कि दस सालों में कानून के बारे में प्रशासन को जानकारी नहीं रही. इसलिए लाखों लोग आज भी अपने वन अधिकारों से वंचित हैं. वर्तमान सरकार ने अपनी राजनीतिक इच्छा दिखाई है कि यह कानून लागू हो सके. इस तरह की कार्यशाला कानून के प्रभावी क्रियान्वयन की दिशा में प्रभावी होगा.