शशांक द्विवेदी, खजुराहो। बुंदेलखंड में त्योहारों को मनाने अपनी ही परंपरा है। दीपावली के बाद ग्रामीण अंचलों में दिवारी और पाई डंडा नृत्य का अपना अलग महत्व है। दिवारी नृत्य में जहां मोर पंख और डंडे का मुख्य आकर्षण रहता है। इसे एक उत्सव के रूप में मनाया गया। संस्कृति विभाग द्वारा एक दिवसीय मोनिया उत्सव का आयोजन खजुराहो में किया गया।
किसी उत्सव की शुरुआत मतंगेश्वर महादेव की पूजा से की जाती है, और मोनिया भी सबसे पहले इसी महादेव के मंदिर से उत्सव की शुरुआत करते हैं। यहां अनोखा नजारा देखने को मिला है। पुरुषों को सुशोभित मोनिया नृत्य जिसमें मंदिर में पहुंची महिलाओं ने मौन गाकर और नाचकर समा बांधा। मोनिया उत्सव के मंच पर क्षेत्र से आने वाले मौनीयों के लिए विशेष रूप से मंच तैयार किया गया। इस वर्ष से इस उत्सव की शुरुआत खजुराहो में किया गया।
मौनिया उत्सव के दौरान खजुराहो घूमने आये विदेशी पर्यटकों ने भी मौनियों के साथ नाचकर उत्सव का आकर्षण और भी बढ़ा दिया। हालांकि विदेशी पर्यटक यहां आकर देशी संस्कृति में घुलमिल जाते हैं और बुंदेली संस्कृति विदेशियों को खूब भाती है।
वीरता और शौर्य को प्रदर्शित पाई डंडा नृत्य की अपनी अलग ही छवि है। नृत्यों का बुंदेलखंड के अलग-अलग अंचल में अपना अलग महत्व है, हालांकि समय के साथ यह संस्कृति आज विलुप्त होती जा रही है, और जिसे सहेजने के लिए ही मोनिया उत्सव की शुरुआत की जा रही है, ताकि संस्कृति के रंग फीके न पड़े।
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