Sharad Pawar: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (maharashtra election) के बीच एनसीपी-एसपी चीफ शरद पवार (Sharad Pawar) ने चुनावी राजनीति से संन्यास लेने के संकेत दिए हैं। अपने पोते युगेंद्र पवार के समर्थन में बारामती में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए शरद पवार ने कहा, ”मुझे अब विधायक और सांसद नहीं बनना। 14 बार चुनाव लड़ चुका हूं और कितनी बार चुनाव लड़ूंगा। कहीं जाकर तो रुकना ही पड़ेगा। अब नए लोगों को चुनकर आना चाहिए। अब सत्ता नहीं चाहिए, बस समाज के लिए काम करना चाहता हूं। शरद के इस बयान के साथ ही साफ हो गया कि महाराष्ट्र की सियासत का ‘पावर’ अब ऑफ होने वाला है।

Sharad Pawar: शरद पवार राजनीति से लेंगे संन्यास, बोले- कहीं तो रुकना पड़ेगा, अब नए लोगों को चुनकर आना चाहिए

शरद पवार ने 1 मई 1960 से अपने राजनीति कैरियर की शुरुआत की थी। तब उनकी उम्र 27 साल थी। 27 साल की उम्र में पहली बार विधायक निर्वाचित हुए शरद पवार करीब 64 वर्षों से राजनीति में एक्टिव हैं। इस दौरान वह विधायक, सांसद, महाराष्ट्र के सीएम, केंद्र में मंत्री समेत के कई अहम भूमिका निभा चुके हैं।

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शरद पवार ने काफी कम उम्र से ही राजनीति में सफलता अर्जित करनी शुरू कर दी थी। शरद पवार ने सक्रिय रूप से राजनीति में 1958 में कदम रखा जब उन्होंने यूथ कांग्रेस ज्वाइन किया था। वह पुणे जिले में यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए थे। 1964 में उन्हें महाराष्ट्र यूथ कांग्रेस का सचिव बनाया गया था। 1967 में पहली बार केवल 27 साल की उम्र में बारामती से विधायक निर्वाचित हुए थे। इसके बाद उन्होंने राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1967 से 1990 तक उन्होंने कांग्रेस के ही टिकट पर यहां से चुनाव जीता। शरद पवार को 70 के दशक की शुरुआत में पहली बार कैबिनेट बर्थ मिला जब वसंतराव नाइक की सरकार में उन्हें गृह मंत्री बनाया गया था।

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सबसे कम उम्र के सीएम बने शरद पवार

शरद पवार 1978 में महाराष्ट्र के सबसे कम उम्र के सीएम बने थे। वह उस वक्त महज 38 वर्ष के थे। 1984 में वह बारामती से पहली बार लोकसभा सांसद निर्वाचित हुए थे। हालांकि 1985 में वह प्रदेश की राजनीति में लौट आए फिर विधानसभा का चुनाव लड़ा और चुनाव के बाद वह विपक्ष के नेता बने।

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1988 में जब शंकरराव चव्हाण को राजीव गांधी ने केंद्रीय कैबिनेट में शामिल किया तो शरद पवार को सीएम पद की जिम्मेदारी दी गई। 1990 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 141 सीटें मिलीं और वह कुछ सीटों से बहुमत से दूर रह गई। हालांकि 12 निर्दलियों के समर्थन से इसने सरकार बनाई और शरद पवार को फिर महाराष्ट्र का सीएम बनाया गया।

पी वी नरसिम्हा राव की सरकार में बने रक्षा मंत्री

राजीव गांधी की हत्या के बाद पी वी नरसिम्हा राव को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। नरसिम्हा राव के पीएम बनने के बाद उन्होंने शरद पवार को रक्षा मंत्री की जिम्मेदारी दी। हालांकि मुंबई में हुए दंगे के बाद सुधाकर राव ने महाराष्ट्र के सीएम पद से इस्तीफा दे दिया और शरद पवार से कहा कि वह दोबारा सीएम पद की जिम्मेदारी संभालें। 6 मार्च 1993 को शरद पवार ने चौथी बार महाराष्ट्र के सीएम के रूप में शपथ ग्रहण किया।

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1999 में किया एनसीपी का गठन
1999 में शरद पवार, पी ए संगमा और तारिक अनवर ने पार्टी के भीतर यह मांग की कि इटली में जन्मीं सोनिया गांधी की जगह किसी भारतीय व्यक्ति को पीएम पद का उम्मीदवार बनाया जाए। इसे लेकर सीडब्ल्यूसी ने तीनों को छह वर्षों के लिए निष्कासित कर दिया। इसके बाद शरद पवार ने जून 1999 में एनसीपी का गठन किया। बावजूद इसके उन्होंने 1999 में कांग्रेस के साथ विधानसभा का चुनाव लड़ा। कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की सरकार महाराष्ट्र में आई। हालांकि शरद पवार ने प्रदेश की राजनीति में वापसी नहीं की। 2004 में शरद पवार यूपीए का हिस्सा बन। पीएम मनमोहन सिंह के कार्यकाल में शरद पवार को कृषि मंत्री बनाया गया।

राजनीतिक करियर पर एक नज़र

  • शरद पवार ने 1960 में शुरू की राजनीति और छह दशकों तक महाराष्ट्र की राजनीति की बने धुरी रहे.
  • आपातकाल के बाद कांग्रेस में दो फाड़ हो गया और पवार ‘रेड्डी कांग्रेस’ के साथ चले गए.
  • जुलाई 1978 में उन्हें महाराष्ट्र के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला.
  • साल 1986 में कांग्रेस में वापसी और 1988 में महाराष्ट्र के दूसरी बार मुख्यमंत्री बने.
  • साल 1993 में, पवार तीसरी बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने.
  • पवार 1996 से ही केंद्र की राजनीति में अहम किरदार बन गए.
  • 1999 में पवार ने सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा उठाया और कांग्रेस से अलग होकर ‘राष्ट्रवादी कांग्रेस’ बनाई.
  • महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी गठबंधन का श्रेय मुख्य रूप से पवार को ही दिया जाता है.
  • पवार बीसीसीआई और आईसीसी की लंबे समय तक अध्यक्ष रहे.
  • कहा जाता है कि शरद पवार प्रधानमंत्री पद के क़रीब दो बार पहुंचे थे.

2005 में बीसीसीआई और 2010 में आईसीसी अध्यक्ष बने

कहा जाता है कि शरद पवार कभी हारते नहीं हैं. जब वो खुद चुनाव लड़ते हैं तो जीत उनकी होती है, जब जीत पक्की न हो तो वो नहीं लड़ते हैं। लेकिन फिर भी उन्हें एक चुनाव में हार का सामना करना पड़ा और वह उनके चुनावी करियर की एकमात्र हार थी. बेशक वह राजनीतिक क्षेत्र में नहीं बल्कि क्रिकेट के मैदान में थी। 2004 में उन्हें तत्कालीन अध्यक्ष जगमोहन डालमिया के हाथों ‘भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड’ यानी ‘बीसीसीआई’ के चुनाव में बेहद कड़े मुक़ाबले में हार माननी पड़ी थी।

इससे पहले 2001 में, उन्होंने ‘मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन’ के चुनाव में अजीत वाडेकर को हराया था। भारत में क्रिकेट प्रबंधन पर उनका प्रभाव तेजी से बढ़ा। 2004 में मिली हार ने उन्हें झकझोर दिया था, लेकिन अगले ही साल उन्होंने डालमिया को हरा दिया और ‘बीसीसीआई’ के अध्यक्ष बन गए। उसके बाद, पवार और उनके गुट ने कई वर्षों तक भारतीय क्रिकेट को नियंत्रित किया। 2010 में वे ‘इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल’ यानी ‘आईसीसी’ के अध्यक्ष बने। उनके समय में ही टी-20 क्रिकेट की ‘इंडियन प्रीमियर लीग’ शुरू हुई, जिसने भारतीय क्रिकेट का चेहरा ही बदल दिया।

जब प्रधानमंत्री बनने के क़रीब थे पवार

शरद पवार के राजनीतिक जीवन में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है क्योंकि उनके करियर के इन्हीं दिनों के बारे में कहा जाता है कि पवार के हाथों से प्रधानमंत्री बनने का मौका निकल गया। 90 के दशक की शुरुआत तक, पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर पवार की स्थिति महत्वपूर्ण हो गई थी क्योंकि वे कांग्रेस में लौट आए थे और मुख्यमंत्री बने। 1991 में राजीव गांधी की हत्या में हो गई थी और कांग्रेस में नेतृत्व का सवाल एक बड़ा मुद्दा बन गया। सोनिया तब राजनीति में नहीं आयीं थीं।

जैसा कि पवार ने अपनी आत्मकथा में भी लिखा है, “कांग्रेस में कई लोग, ख़ासकर युवा, चाहते थे कि पवार पार्टी का नेतृत्व करें। राजीव की हत्या के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत तो नहीं मिला लेकिन वह उसके क़रीब पहुंच गई थी।प्रधानमंत्री पद की दौड़ में पवार उतरे, लेकिन वोटिंग में पी. वी नरसिम्हा राव को ज़्यादा वोट मिले और पवार के हाथों से मौका निकल गया। हालांकि उस सरकार में वो रक्षा मंत्री बने. नरसिम्हा राव की इस सरकार को कुछ वर्षों से शुरू हुए राम जन्मभूमि आंदोलन के निर्णायक दौर का सामना करना पड़ा था।

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