शिवा यादव, दोरनापाल। भले ही आज देश में थ्रीजी या फोर जी नेटवर्क में नेटवर्क  बात की जा रही हो लेकिन आज भी सुकमा जिले के ऐसे कई गांव है जहां नेटवर्क तक नहीं पकड़ता। इन इलाकों में तैनात जवानों को परिजनों से बात करने के लिए लाख जतन करने पड़ते है।

नक्सलियों से लोहा लेने वाले जवानों को उस वक्त तकलीफ होती है जब उन्हें परिजनों से बात करने के लिए मशक्कत करना पड़ता है। सुकमा जिले में आज भी कई ऐसे कैम्प है जहां नेटवर्क नहीं है।

आलम यह है कि यहां न तो कुरियर की व्यवस्था है और न ही डाक व्यवस्था कि वो अपने परिजनों को खत ही भेज सकें। ऐसे में जवानों को मायूसी का सामना करना पड़ता है। उन्हें अपने परिजनों से बात करने का मौका तब मिलता है जब वे किसी काम के लिए मुख्यायल आते हैं।

दोरनापाल से करीब 30 km दूर टेमेलवाड़ा जहां सीआरपीएफ 150 और कोबरा 206 की बटालियन तैनात है। यहां पर नेटवर्क बहुत ही कम काम करता है। पास में ही स्थित चिंतलनार में टावर लगा हुआ है।

ऐसे में कैम्प में इक्का-दुक्का ही ऐसी जगह है जहां नेटवर्क काम करता है। उन जगह पर जवानों ने छोटा-छोटा मोर्चा बना दिया है और वहां पर मोबाइल रखने के लिए प्लास्टिक बोतल लगा दी है। जहां वे अपने फोन को रख देते हैं ताकि शायद कभी नेटवर्क मिल जाए और उनके अपनों का कोई फोन आ सके।