Rajasthan By Election: सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है, जबकि दो सीटों पर सीधा मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच है. यह उपचुनाव राजस्थान में हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव और आगामी लोकसभा चुनावों से पहले दोनों दलों के लिए एक अहम परीक्षा है. बीजेपी को प्रदेश में सरकार बने हुए लगभग 10 महीने ही हुए हैं, ऐसे में ये उपचुनाव बीजेपी की सरकार के प्रति जनता के भरोसे की परीक्षा भी मानी जा रही है.

इन उपचुनावों में दौसा सीट सबसे ज्यादा चर्चित है. बीजेपी की ओर से यहां मंत्री किरोड़ी लाल मीणा के भाई जगन मोहन मीणा और कांग्रेस की ओर से सचिन पायलट के करीबी दीनदयाल बैरवा के बीच मुकाबला है. इस सीट पर दोनों बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है, जिससे यह सीट “हॉट सीट” के रूप में देखी जा रही है. वहीं, खींवसर सीट पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) प्रमुख हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल चुनावी मैदान में हैं. इस सीट पर भी बीजेपी, कांग्रेस और आरएलपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है.

आदिवासी बहुल चौरासी सीट पर भी खासा ध्यान है, जहां बीते लोकसभा चुनाव में बांसवाड़ा से विधायक बने राजकुमार रोत के इस्तीफे के कारण उपचुनाव हो रहे हैं. इस सीट पर बीजेपी, कांग्रेस और नवगठित बाप (भारतीय आदिवासी पार्टी) के बीच टक्कर है. इसी तरह, सलूंबर, झुंझुनूं और देवली उनियारा में भी त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति है, जहां विभिन्न दलों के उम्मीदवारों ने अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है.

चुनावों के दौरान स्थानीय मुद्दों के बजाए राष्ट्रीय मुद्दों पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है. धारा 370, राम मंदिर, और लैंड जिहाद जैसे मुद्दे उठाए जा रहे हैं. खासकर मुस्लिम बहुल रामगढ़ सीट पर लैंड जिहाद का मुद्दा बीजेपी द्वारा उठाया गया है. मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और बीजेपी के अन्य नेताओं ने इन मुद्दों को अपने चुनावी भाषणों में प्राथमिकता दी है, वहीं कांग्रेस के पूर्व मंत्री रघु शर्मा ने अपने विवादित बयान से इन चुनावों में तनाव का माहौल पैदा कर दिया है.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं अशोक गहलोत और सचिन पायलट इस चुनाव में सक्रिय रूप से भाग नहीं ले पा रहे हैं. महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों के चुनाव प्रचार में व्यस्त होने के कारण ये नेता राजस्थान में इन उपचुनावों पर पूरी तरह ध्यान नहीं दे पाए. इसका असर यह हुआ कि कांग्रेस का स्थानीय नेतृत्व और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को ही चुनावी रणनीतियों की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी, जिससे पार्टी लोकसभा चुनाव जैसी मजबूती नहीं दिखा पाई.

चुनाव प्रचार के दौरान किसान और युवा संबंधित मुद्दों पर भी जोर रहा. बीजेपी ने दावा किया कि राज्य में उनकी सरकार बनने के बाद किसानों की स्थिति में सुधार हुआ है और युवाओं को रोजगार के नए अवसर मिले हैं. मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने हर चुनावी सभा में युवाओं को नौकरी देने के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि उनके कार्यकाल में एक भी भर्ती परीक्षा का पेपर लीक नहीं हुआ, जबकि कई नौकरियों में भर्तियाँ जारी हैं.

राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनाव को निष्पक्ष और शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न कराने के लिए सख्त दिशा-निर्देश जारी किए हैं. मतदान के अंतिम 48 घंटे में बाहरी व्यक्तियों और वाहनों की कड़ी निगरानी रखने का आदेश दिया गया है.

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