हेमंत शर्मा, इंदौर। ऐसे आयोजन विरले ही होते हैं जो इतिहास में अपनी छाप छोड़ देते हैं। प्रतिष्ठित कवि चंद्रकांत देवताले की स्मृति में आयोजित एक अद्भुत कला संगम ‘पानी का दरख़्त’ ने इंदौर के संस्कृतिप्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर दिया। वायलिन वादन, कविता पाठ और चित्रकला का यह संगम अपनी नवीनता और रचनात्मकता के कारण इतिहास में दर्ज होने योग्य साबित हुआ।
अनोखी संकल्पना का जन्म
यह आयोजन देवताले की बेटी और अंतर्राष्ट्रीय वायलिन वादिका अनुप्रिया देवताले की संकल्पना का परिणाम था। उन्होंने अपने पिता की कविताओं को एक साथ कई कला माध्यमों से साकार करने का विचार किया। यह संकल्पना जितनी असाधारण थी, उसे साकार करना भी उतना ही चुनौतीपूर्ण था। लेकिन इस अनोखे आयोजन ने शहर के कला और साहित्य प्रेमियों के लिए एक अद्वितीय अनुभव पेश किया।
कविताओं का जीवंत अनुभव
देवताले की कविताओं को जब अनुप्रिया के वायलिन वादन के साथ संस्कृतिकर्मी आलोक बाजपेयी ने पढ़ा, तो ऐसा महसूस हुआ मानो कविताएं जीवंत हो उठी हों। एक-एक शब्द संगीत के साथ नई ऊर्जा और भावों से भरा हुआ प्रतीत हुआ। इस अनुभव को और भी गहन बनाने के लिए जीवेश आनंद द्वारा विशेष रूप से तैयार सांगीतिक ट्रैक्स का उपयोग किया गया, जिसने माहौल को सम्मोहक बना दिया।
कला का अनोखा संगम
कार्यक्रम के दौरान, कलाकार सीरज सक्सेना ने कैनवास पर अपनी पेंटिंग से कविताओं को चित्रित कर दिया। कविताओं, संगीत और चित्रकला के इस अनोखे संगम ने दर्शकों को ऐसा अनुभव दिया जो शायद ही पहले कभी हुआ हो। किसी कवि की रचनाओं को एक ही मंच पर इस तरह विभिन्न कला माध्यमों से प्रस्तुत करना इंदौर ही नहीं, संभवतः पूरे देश में पहली बार हुआ है।
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अनोखे नवाचारों का संगम
‘पानी का दरख़्त’ में कई नवाचार भी देखने को मिले। पूरे कार्यक्रम को तीन भागों में विभाजित किया गया, परंतु इसके बावजूद कोई ब्रेक नहीं रखा गया, जिससे दर्शक भावों की निरंतरता में बंधे रहे। कविता, संगीत और पेंटिंग के इस अद्वितीय समां में दर्शक इतने मंत्रमुग्ध हो गए कि उन्हें समय का आभास ही नहीं हुआ। अंधेरे में बैठे दर्शकों को ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वे और कलाकार एक ही स्थान पर हैं। दर्शकों की तालियों की गूंज से हॉल में होने का एहसास हो रहा था, जो इस आयोजन की सफलता का प्रमाण थी।
अद्भुत शुरुआत और रोचक स्मरण
कार्यक्रम की शुरुआत वरिष्ठ कवि सरोज कुमार, नर्मदा प्रसाद उपाध्याय, पद्मश्री भालू मोंढे, जयंत भिसे और सत्यनारायण व्यास ने दीप प्रज्वलन कर की। इसके बाद, पत्रकार सुश्री जयश्री पिंगले ने चंद्रकांत देवताले के बारे में यादगार और रोचक बातें साझा कीं, जिसने कार्यक्रम की भावभूमि को और भी गहराई दी।
शहर के संस्कृतिप्रेमियों की उपस्थिति
इस आयोजन में शहर के तमाम साहित्यकार, संगीत प्रेमी और कलाकार शामिल हुए। आयोजन का समापन श्री जीवेश आनंद द्वारा देवताले के साथ बिताए पलों को याद करते हुए किया गया, जिससे दर्शकों को उनकी व्यक्तिगत विशेषताओं को समझने का अवसर मिला। अनुप्रिया देवताले ने अंत में सभी का आभार व्यक्त किया।
‘पानी का दरख़्त’ जैसे अनोखे आयोजन ने इंदौर के संस्कृतिप्रेमियों को एक ऐसा यादगार अनुभव दिया जो लंबे समय तक उनकी स्मृतियों में बना रहेगा। कला और साहित्य के इस संगम ने चंद्रकांत देवताले की रचनाओं को एक नया जीवन दिया, और इंदौर के सांस्कृतिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा।
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