विक्रम मिश्र, लखनऊ. उत्तर प्रदेश में मेडिकल सुविधाओं को लेकर योगी सरकार ने नया प्रयोग किया था. जिसके तहत हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज की स्थापना करने की मंशा सरकार की थी. जिसके अनुमानित लक्ष्य को सरकार ने पूर्ण भी कर लिया. इन मेडिकल कॉलेज की स्थापना के दरम्यान उद्घाटन भी धूमधाम से किया गया. ज्यादातर जिलों में खुद प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ मौजूद थे. आपको जानकर सुखद अनुभव होगा कि आज उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा सरकारी और गैर सरकारी मेडिकल कॉलेज के साथ निजी मेडिकल कॉलेज मौजूद हैं. प्रदेश में 33 सरकारी मेडिकल कॉलेज (ppp मॉडल पर बने) मौजूद हैं. जबकि 32 निजी या प्राइवेट मेडिकल कॉलेज स्थापित हैं.

सूबे में डॉक्टर्स की संख्या बढ़ाने के लिए MBBS की 4553 सीटे हैं. जबकि निजी मेडिकल कॉलेज में 5600 सीट उपलब्ध है. इसके अलावा प्रदेश में 2 AIIMS भी उपलब्ध है. लेकिन सवाल अब भी वही है कि इतना कुछ इंफ्रास्ट्रक्चर होने के बावजूद भी कालांतर में गोरखपुर, सैफई और अब झांसी जैसे हादसे क्यों हो जाते हैं. आखिर मरीजों को समुचित इलाज उपलब्ध क्यों नहीं हो पाता है. जब लल्लूराम डॉटकॉम की टीम ने प्रदेश के अस्पतालों का ताजा हाल जाना तो हैरान करने वाले आंकड़े सामने आए. लल्लूराम डॉटकॉम की पड़ताल में सामने आया कि ज्यादातर मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टर्स की समुचित पदस्थापना ही नहीं है. यानी संख्या और विशेषज्ञों की कमी से प्रदेश जूझ रहा है.

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सीएम के गृह जनपद में हुआ था हादसा

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब गोरखपुर से सांसद थे तो उन्होंने इस जिले में तबाही मचाने वाली जल जनित बीमारी जापानी इंसेफ्लाइटिस के लिए संसद में आवाज बुलंद की थी. फिर जब उन्होंने साल 2017 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला तो उन्होंने इस बीमारी के समूल नाश के लिए योजना बनाई और बहुत हद तक कामयाब भी हुए. लेकिन साल 2017-18 में ही एक हादसे ने उत्तर प्रदेश के पिछड़ेपन और राजनीतिक मंशा पर सवाल उठा दिए. साल 2017-18 में गोरखपुर में ऑक्सीजन की कमी से बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में तकरीबन 50 बच्चों ने दम तोड़ दिया था. जिसके बाद नींद से जागी सरकार ने आनन फानन में ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली फर्म और एक डॉक्टर के साथ 5 स्पोर्टिंग स्टाफ पर कार्रवाई की थी. इसी हादसे के 10 दिन बाद एक रहस्यमयी बुखार से सैफई मेडिकल कॉलेज में 12 बच्चों ने दम तोड़ दिया था. जिस पर योगी सरकार के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह का बयान आया था कि एक महीने में ऐसे हादसे होते ही है. इसके बाद आजमगढ़, मऊ में भी ऐसी ही दुखद घटना की तस्वीरें सामने आई.

सूबे में मेडिकल कॉलेज की सच्चाई

उत्तर प्रदेश में सरकारी 33 मेडिकल कॉलेज इस मंशा से बनाए गए थे कि सूबे को बीमारू राज्य के तमगे से विरक्त किया जाए. PPP मॉडल से मेडिकल कॉलेज भी बनाए गए. जिससे कि जनता को समुचित इलाज मिल सके. लेकिन पूर्वांचल की ताजा स्थिति तो ऐसी है कि जहां-जहां मेडिकल कॉलेज बने वहां पर आज जिला अस्पताल वाली सुविधा भी लोगों को मयस्सर नहीं है.

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क्या है जिलेवार स्थिति?

देवरिया में जिला अस्पताल को अपग्रेड करके मेडिकल कॉलेज बनाया गया. लेकिन सुविधाएं अब भी मयस्सर नहीं है. देवरहा बाबा मेडिकल कॉलेज में स्पोर्टिंग स्टाफ और चिकित्सकों की भारी कमी है. आज भी यहां पर गंभीर रूप से बीमार रोगी या गंभीर रूप से दुर्घटनाग्रस्त मरीज को गोरखपुर मेडिकल कॉलेज या लखनऊ या फिर बनारस के लिए रेफर किया जाता है.

कुशीनगर मेडिकल कॉलेज का उद्घाटन खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया था, लेकिन यहां भी हाल देवरिया जैसा ही है. ये दोनों जिले बिहार से लगे हुए हैं और यहां पर सीमावर्ती इलाके के कारण मरीजों की संख्या लगातार रहती है.

आजमगढ़ और मऊ में बने मेडिकल कॉलेज में कुल डॉक्टर्स की पदस्थापना 67 है. लेकिन मौके पर पड़ताल में 32 डॉक्टर्स की पदस्थापना ही हो सकी है. जबकि यहां भी गंभीर रोगियों को बनारस या लखनऊ ही रेफर किया जाता है.

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साल 2017 से आज तक ऐसा ही विकसित हुआ यूपी

उत्तर प्रदेश में प्रचार और प्रसार की बात करें तो विज्ञापनों में तो यूपी में रामराज है. यहां की पर्यटन की योजनाओं को देखें तो टूरिस्ट की आमद बढ़ाने के लिए मेडिकल टूरिज्म का एक विकल्प भी दिया जाता है. लेकिन सरकार की तरफ से आम जनता को मिली सुविधाएं देखें तो मामला आपके सामने है. 2017 में ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मृत्यु हुई थी, अब आग लगने के कारण बच्चों ने जान गवाई है.

कैंसर इंस्टिट्यूट की बारी

लखनऊ में बड़े जोरशोर के साथ एक अस्पताल का निर्माण कराया गया और उसको कल्याण सिंह कैंसर अस्पताल नाम दिया गया. यहां पर तकरीबन 5 महीने पहले ओटी में आग लग गई थी. जिसमें एक मरीज की झुलसने से मौत और एक तीमारदार गंभीर रूप से घायल हुआ था. उस समय यहां पर जेई फायर के पद पर एक कर्मचारी कार्यरत थे। लेकिन उनकी स्थिति ऐसी नही थी कि वो तेज़ी से मशीनों को ऑपरेट कर सके। अगर ऐसा होता तो मरीज की जान बचाई जा सकती थी। इसके कुछ दिनों के बाद वो जेई फायर सेवानिवृत्त हो गए और तबसे ये पद रिक्त चल रहा है।

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श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविल अस्पताल मुख्यमंत्री आवास 5 कालिदास मार्ग से महज 200 मीटर की दूरी पर स्थित है. यहां भी एक बार आग लग चुकी है. जिसमें की ओटी पूरी तरह से जल गया था. उस समय योगी सरकार में जय प्रकाश सिंह स्वास्थ्य मंत्री थे. सूबे के सबसे बड़ा अस्पताल किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज में भी साल 2018 में ICU में शार्ट सर्किट की वजह से आग लगी थी. आग बहुत ही भयानक थी जिसमें ICU के सभी संयंत्र जलकर खाक हो गए थे.

सबक क्यों नहीं ले रही सरकार?

सरकार के प्रचार में है कि मुस्कुराइए आप लखनऊ में है और यूपी नहीं देखा तो क्या देखा. क्या इस हालात पर लखनऊ के लोग मुस्कुराएं? या यही देखने यूपी आएं लोग? झांसी कांड और प्रदेश के अस्पतालों की सुविधा पर जनता से जब लल्लूराम डॉटकॉम ने बात की तो सबने सरकारी तंत्र की जमकर भर्त्सना की. लखनऊ की रहने वाली प्रतिभा मिश्रा ने बताया कि सरकार की मंशा के अनुरूप सरकारी महकमे के लोग काम नहीं कर रहे हैं. सिर्फ कमाई और कमीशनखोरी के कारण जानता को अच्छा इलाज मुहैय्या नहीं हो पा रहा है.

आनंद शुक्ल गोमतीनगर के रहवासी हैं, उन्होंने सरकारी तंत्र पर ही सवाल खड़ा किया है. उनके मुताबिक चिकित्सा व्यवसाय बनकर रह गया है. अगर आपको अच्छा इलाज चाहिए तो 5 स्टार रेटिंग वाले मेडिकल कॉम्प्लेक्स मेदांता, अपोलो और मैक्स जैसे अस्पताल आपके लिए तैयार हैं. जिस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है. जिस तरह की घटना झांसी में हुई है उससे माताओं की कोख सुनी हो गई है. लेकिन सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है.

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कमाई और दलाली का अड्डा बने अस्पताल- नव्या मिश्रा

नव्या मिश्रा चिनहट लखनऊ बताती हैं कि सरकारी अस्पताल और जिलों के मेडिकल कॉलेज बस कमाई और दलाली का अड्डा बनकर रह गए है. यहां पर आपको ईलाज करवाना है तो किसी बड़ी पहुंच वाले लाइजनर को पकड़िए. सब हो जाएगा.
अस्पतालों की जांच की जाए तो ज्यादातर अस्पताल में लगे फायर सेफ्टी अलार्म काम तक नहीं करते हैं. आग लग जाए तो वाटर वाल खुलेंगे नहीं जिससे कि नियंत्रण किया जा सके.