मुंबई। 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा के लिए 20 नवंबर को होने वाले चुनाव से पहले सांप्रदायिक ध्रुवीकरण देखने को मिल रहा है. हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कमजोर प्रदर्शन का बड़ा कारण मुसलमानों द्वारा रणनीतिक मतदान का परिणाम माना जा रहा है, जिन्होंने महा विकास अघाड़ी (एमवीए) का बड़े पैमाने पर समर्थन किया.
मुसलमानों ने शिवसेना (यूबीटी) के अरविंद सावंत जैसे उम्मीदवारों का भी समर्थन किया, जबकि पार्टी ने अतीत में मुस्लिम विरोधी रुख अपनाया था और जनवरी, 1992 के दंगों में इसकी सक्रिय भूमिका थी. उन्होंने जानबूझकर इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि उद्धव ठाकरे की अध्यक्षता वाली राज्य कैबिनेट का अंतिम निर्णय औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति शिवाजी महाराज नगर करना था. मौलानाओं और अन्य धार्मिक नेताओं ने मुसलमानों से भाजपा और उसके सहयोगियों को हराने के लिए कह रहे हैं, भले ही इसके लिए शिवसेना (यूबीटी) को वोट देना पड़े.
लोकसभा चुनाव के दौरान महाराष्ट्र में भाजपा को कई सीटों पर हार केवल इसलिए मिली, क्योंकि बड़े पैमाने पर मुसलमानों ने उसके खिलाफ मतदान किया. यह उत्तर-पूर्व मुंबई, धुले और अन्य कई सीटों पर देखा गया, जहां भाजपा छह विधानसभा क्षेत्रों में से पांच में आगे थी, लेकिन छठे मुस्लिम बहुल क्षेत्र में उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा.
लोकसभा चुनाव में इच्छानुरूप नतीजा आने के बाद मुस्लिम नेता एक बार फिर अपने समुदाय के सदस्यों से भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन को हराने का आग्रह कर रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि वे मुस्लिम उम्मीदवारों के लिए वोट की अपील नहीं कर रहे हैं.
कम से कम 40 सीटों पर मुस्लिम मतदाता 22 प्रतिशत हैं, और अगर वे सामूहिक रूप से मतदान करते हैं तो वे चुनाव परिणाम में अंतर ला सकते हैं. मुंबादेवी, मानखुर्द-शिवाजी नगर, बांद्रा ईस्ट और अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाता सामूहिक रूप से मतदान करेंगे तो वे निर्णय लेंगे.
राज्य चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, मैदान में 4,136 उम्मीदवारों में से केवल 420 मुस्लिम हैं, और कई ऐसे निर्दलीय उम्मीदवार हैं जिन्हें भाजपा विरोधी वोटों को विभाजित करने के लिए निहित स्वार्थों द्वारा मैदान में उतारा गया है. कांग्रेस ने, अपनी धर्मनिरपेक्षता की तमाम बातों के बावजूद, केवल नौ मुसलमानों को टिकट दिया है, जो राज्य की आबादी का 1.30 करोड़ या 11.54 प्रतिशत हैं. वहीं एनसीपी (शरद पवार) ने दो मुसलमानों को और शिवसेना (यूबीटी) ने एक-एक को मैदान में उतारा है.
हालांकि, इन सभी कारकों ने मुस्लिम समुदाय के प्रभावशाली लोगों को भाजपा-मुक्त महाराष्ट्र के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने से नहीं रोका है. मराठी मुस्लिम सेवा संघ ने अल्पसंख्यक समुदाय के 200 से अधिक गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर दोहरी रणनीति बनाई है, ताकि अधिक से अधिक मुस्लिम मतदाताओं को अपने साथ जोड़ सकें और फिर उन्हें भाजपा और उसके सहयोगियों के खिलाफ वोट करने के लिए प्रेरित कर सकें.
देवबंदी संप्रदाय से ताल्लुक रखने वाले ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड के मौलाना सज्जाद नोमानी ने मुसलमानों से एमवीए को वोट देने की खुलेआम अपील की है. उन्होंने कहा कि 269 सीटों के मतदाताओं से संपर्क किया गया है. उन्होंने एमवीए नेताओं को मांगों की एक सूची भी भेजी है, जिसमें से एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर तत्काल प्रतिबंध लगाना है.
प्रदेश कांग्रेस प्रमुख नाना पटोले ने इन मांगों पर पहले ही सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है. वहीं दूसरी ओर एक प्रभावशाली बरेलवी संगठन रजा अकादमी के सईद नूरी ने कहा, “हम मुसलमानों से किसी विशेष पार्टी या गठबंधन को वोट देने के लिए नहीं कह रहे हैं, बल्कि मतदान के दिन बड़ी संख्या में मतदान करने के लिए कह रहे हैं.”
नोमानी और अन्य मुस्लिम नेताओं के इन प्रयासों के जवाब में संघ परिवार ने हिंदू मतदाताओं को बड़े पैमाने पर संगठित करना शुरू कर दिया है. आरएसएस के एक सूत्र का कहना है कि हमारा तात्कालिक लक्ष्य हिंदू वोटों में कम से कम 20 प्रतिशत की वृद्धि करना है. हम घर-घर जाकर हिंदुओं से वोट देने की अपील कर रहे हैं.
आरएसएस के सभी अग्रणी संगठनों के हजारों सदस्य मैदान में उतर आए हैं, और रविवार को ये प्रयास चरम पर पहुंचने की उम्मीद है, जो मतदान से पहले आखिरी रविवार है. हिंदू वोटों को संगठित करने और उन्हें एकजुट करने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का “बटेंगे तो कटेंगे” नारा और मोदी का “एक है तो सुरक्षित है” का व्यापक प्रचार किया जा रहा है. उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मुस्लिम नेताओं पर “वोट जिहाद” करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि भाजपा के पास हिंदुत्व के मुद्दे को बड़े पैमाने पर उठाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
ऐसे में चुनाव प्रचार अभियान के खत्म होने के साथ ही यह देखा जा रहा है कि चुनाव हिंदुत्व और “वोट जिहाद” के बीच की लड़ाई में सिमटता जा रहा है. महंगाई, सोया और प्याज जैसी कृषि उपज की कीमतें, बेरोजगारी और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार जैसे अन्य मुद्दे पीछे छूटते दिख रहे हैं.