नई दिल्ली/लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट ने आज एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। जिसमें कहा गया है कि ‘अनुकंपा नियुक्ति’ कोई निहित अधिकार नहीं है, जिसे बिना किसी जांच या चयन प्रक्रिया के दिया जा सकता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनुकंपा नियुक्ति हमेशा ‘कड़े मापदंडों’ और उचित जांच के अधीन होती है।

अनुकंपा नियुक्ति का दावा अस्वीकार

सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति अभय एस ओका, अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे। एक ऐसे व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसका अपने पिता, जो पुलिस कांस्टेबल थे, की मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति का दावा अस्वीकार कर दिया गया था।

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कोर्ट ने कही ये बात

इस मामले में न्यायमूर्ति मसीह ने लिखित निर्णय में कहा ‘अनुकंपा नियुक्ति का कोई निहित अधिकार नहीं है। यह एक ऐसा प्रावधान है जो विशेष परिस्थितियों में, जैसे कि किसी कर्मचारी की अचानक मृत्यु के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति को संभालने के लिए कड़े मापदंडों की जांच के बाद प्रदान किया जाता है।’

कर्मचारी के परिवार को आर्थिक संकट से उबारना

साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य मृतक कर्मचारी के परिवार को आर्थिक संकट से उबारना है। ताकि वे खुद को आपातकालीन स्थिति से बाहर निकाल सकें, लेकिन यह नियुक्ति नियमों और निर्देशों के अनुसार ही दी जा सकती है।

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इसके अलावा कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अनुकंपा नियुक्ति एक सामान्य नियम का अपवाद है और यह दावेदार द्वारा निर्धारित समय सीमा और नियमों को पूरा करने पर ही दी जा सकती है। कोर्ट ने हरियाणा सरकार द्वारा जारी 1999 के नीति निर्देशों का उल्लेख करते हुए कहा कि दावेदार को अपने आवेदन के लिए कर्मचारी की मृत्यु की तिथि से तीन साल के भीतर आवेदन प्रस्तुत करना अनिवार्य है। जिसे किसी भी मामले में अनुचित या अतार्किक नहीं कहा जा सकता, खासकर तब जब अनुकंपा नियुक्ति एक निहित अधिकार नहीं है।