रवि रायकवार, दतिया। मध्य प्रदेश के दतिया से करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित चपरा ग्राम में एक दिव्यांग अत्यंत प्रतिभाशाली है, लेकिन काफी गरीब भी है। दिव्यांग होने के कारण वह हाथ से लिख नहीं पाती लेकिन मुंह से लिख कर उसने ग्रेजुएशन की डिग्री में रखी है। इस साल बीएड भी कर लिया, लेकिन अंतिम वर्ष की फीस के 12 हजार न भर पाने के कारण निजी स्कूल संचालक उसकी मार्क शीट नहीं दे रहा है। दिव्यांग शासन प्रशासन से गुहार लगा चुकी है लेकिन कहीं से कोई मदद नहीं मिली।
दिव्यांगों के कल्याण और उनके उत्थान के लिए कहने को तो केंद्र और राज्य शासन की एक दर्जन से अधिक योजनाएं चल रही हैं। लेकिन उन योजनाओं की हकीकत क्या है उसको बयां ये तस्वीर करती है। मुंह से कॉपी पर लिख रही ये लड़की दतिया के चपरा ग्राम की अत्यंत प्रतिभाशाली लड़की है। लेकिन प्रतिभाशाली होने के साथ ये अत्यंत गरीब परिवार से है। इसके माता पिता मजदूरी करके दो वक्त की रोटी कमा पाते हैं।
दिव्यांग होने के कारण वह हाथ से लिख नहीं पाती है। मुंह और पैर से लिख कर उसने ग्रेजुएट कर लिया। इस साल बीएड भी कर लिया। लेकिन अंतिम वर्ष की फीस के 12 हजार न भर पाने के कारण निजी स्कूल संचालक उसकी मार्क शीट नहीं दे रहा है। दिव्यांग शासन प्रशासन से गुहार लगा चुकी है। लेकिन कहीं से कोई मदद नहीं मिली।
निजी कॉलेज के संचालक तो अपनी जेब भरने के लिए कॉलेज चला रहे हैं। सो मंजेश की मजलूम हालत के बाद भी उसका दिल नहीं पसीजा, लेकिन शासन और और प्रशासन के नुमायंदो ने भी दिव्यांग की करुण पुकार का असर नहीं हुआ। अल्वत्ता सेवड़ा के भाजपा विधायक ने अपनी मतदाता को आश्वासन अवश्य दिया कि वह विधायक निधि से मदद करेंगे। शासन समाज के कमजोर वर्गों या दिव्यांगों के कल्याण के लिए भले ही कितनी योजनाएं चला रहा हो लेकिन ये योजनाएं लाल फीताशाही के मकड़जाल में उलझ कर दम तोड़ देती हैं। मंजेश जैसी दिव्यांग प्रशासन की चौखट के चक्कर लगा कर घर बैठ जाती हैं।
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