नीरज उपाध्याय, सारण. Dr. Rajendra Prasad Jayanti: देश के प्रथम राष्ट्रपति और भारत रत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जयंती पर प्रति वर्ष की भांति इस बार भी 3 दिसंबर को उनके ऐतिहासिक जिला स्कूल, छपरा की चर्चा हो रही है। यह वही विद्यालय है, जहां से डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने वर्ष 1902 में एंट्रेंस (मैट्रिक) की परीक्षा उत्तीर्ण कर बिहार का नाम रोशन किया था। उस समय उनकी उत्तर पुस्तिका की जाँच करने वाले अंग्रेज परीक्षक ने उन्हें अद्वितीय प्रतिभा का धनी कहा था। कभी देश के गौरव को शिक्षा देने वाला यह विद्यालय आज अपने स्वर्णिम अतीत के बदहाल वर्तमान का उदाहरण बन गया है। जहां पहले उत्कृष्ट शिक्षण सुविधाएं उपलब्ध थीं। वहीं, अब बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है।

विद्यालय का महत्व

डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को तत्कालीन सारण जिले के जीरादेई गांव में हुआ था। प्राथमिक शिक्षा उन्होंने अपने गांव के स्कूल में प्राप्त की, लेकिन 1893 में उन्होंने छपरा जिला स्कूल में आठवीं कक्षा में दाखिला लिया। उनकी असाधारण बुद्धिमत्ता के कारण उन्हें सीधे आठवीं से नौवीं कक्षा में प्रोन्नति दी गई। यहीं से उन्होंने 1902 में मैट्रिक की परीक्षा दी और बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, बर्मा और नेपाल में प्रथम स्थान प्राप्त किया। हालांकि उनकी उत्तर पुस्तिका कोलकाता से बिहार लाने के प्रयास असफल रहे।

विद्यालय की वर्तमान स्थिति

प्राचार्या के अनुसार, यह विद्यालय आज भी छात्रों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। विद्यालय परिसर में डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नाम पर राजेंद्र वाटिका और एक पार्क स्थापित है। इसके अलावा, स्कूल में कंप्यूटर शिक्षा के लिए जिला प्रशासन द्वारा जिला कंप्यूटर सोसाइटी की स्थापना की गई है।

विद्यालय में वर्तमान में 1300 से अधिक छात्र-छात्राएं नामांकित हैं, जिन्हें 11 शिक्षक शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। यहां कक्षा 9 से 12 तक की पढ़ाई होती है। साथ ही, राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) और कृषि विषय की भी पढ़ाई होती है। हालांकि, कृषि विषय के लिए शिक्षक उपलब्ध नहीं होने के कारण लैब टेक्नीशियन द्वारा कक्षाएं संचालित की जाती हैं।

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शिक्षा विभाग का अतिक्रमण

शिक्षक बताते है कि इस ऐतिहासिक विद्यालय के परिसर में अब शिक्षा विभाग के विभिन्न कार्यालय, जैसे स्थापना, सर्वे शिक्षा अभियान और मध्याह्न भोजन योजना संचालित हो रहे हैं। इसके कारण विद्यालय की शिक्षा व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। हालांकि, छात्रों की संख्या में वृद्धि को देखते हुए एक अलग उच्च विद्यालय भी संचालित किया जा रहा है।

विद्यालय के शिक्षकों और छात्रों के लिए यह गर्व की बात है कि वे उसी स्कूल का हिस्सा हैं, जहां से देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की थी। जब भी इस स्कूल की ऐतिहासिक उपलब्धियों की चर्चा होती है, तो यहां के शिक्षक और छात्र गर्व और प्रेरणा से भर जाते हैं।

यह विद्यालय आज भी डॉ. राजेंद्र प्रसाद की गौरवगाथा को जीवित रखे हुए है और छात्रों को उत्कृष्ट शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। लेकिन, इसे अपने अतीत के गौरव को वापस पाने के लिए और भी अधिक ध्यान और संसाधनों की आवश्यकता है।

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