शिखिल ब्यौहार, भोपाल। पहाड़ियों से घिरा गहरा घना जंगल, सागौन से पटा जंगल, जगह-जगह लगे सावधानी के बोर्ड। शायद आप सोच रहे होंगे कि यह तस्वीर किसी अभयारण्य, नेशनल पार्क या टाइगर रिजर्व की होगी। लेकिन यह कुदरती मेहरबानी भोपाल को नसीब हुई है। सालों से शहरी सीमा क्षेत्र में इस बेशुमार हरियाली और जंगलों के कारण ही भोपाल को ग्रीन सिटी के नाम से जाना जाता है। इन्ही जंगलों में पनाहगार हैं बाघ, जिन्हें अब अर्बन टाइगर की पहचान मिली है। इन बाघों का घरौंदा भी हाल ही में बने रातापानी टाइगर रिजर्व से उतना ही पुराना है, जितना की यह जंगल। लेकिन यह जानकर आपको अचरज होगा कि भोपाल ला  अर्बन टाइगर रातापानी के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। 

जानें इसकी खासियत 

  • रातापानी का जंगल भोपाल के शहरी सीमा क्षेत्र के वन परिक्षेत्र से लगा हुआ है।
  • रातापानी से भोपाल के केरवा, कलियासोत, मेंडोरा, मेंडोरी, समसगढ़, कठोतिया समेत अन्य क्षेत्रों में बाघों का मूवमेंट होता है।
  • रातापानी में वर्तमान में करीब 90 बाघ हैं जबकि भोपाल के जंगलों में 18 से 28 बाघों का मूवमेंट है। यह मूमेंट भी रातापानी से होता है।
  • वन विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक बाघ प्रजनन के लिए भोपाल के जंगलों को पसंद करते हैं। कारण यहां का प्राकृतिक आवास और टाइगर ब्रीडिंग के लिए अनुकूल वातावरण।
  • रातापानी के लगभग 60 फीसदी बाघों का मूवमेंट भोपाल के जंगलों से होते हुए देवास के खेओनी तक बना रहा था। यह बाघों का अपना कॉरिडोर है।
  • रातापानी के कई बाघों ने भोपाल के जंगलों को प्रजनन के लिए चुना। लिहाजा रातापानी टाइगर के लिए भोपाल शहरी वन क्षेत्र किसी वरदान से कम नहीं है।

रातापानी टाइगर रिजर्व के बाघों के भविष्य के लिए यह जरूरी है कि कम से कम भोपाल के उन वन क्षेत्रों के संरक्षण और संवर्धन के लिए ठोस कदम उठाया जाए,जो बाघ भ्रमण क्षेत्र के तौर पर वन विभाग की ही फाइलों में दर्ज हैं। लेकिन, भोपाल के जंगलों को नजर लग चुकी है। 

अतिक्रमण-अवैध निर्माण,कटाई और बाघों के इलाकों में लोगों का बढ़ता हस्तक्षेप

जानकार तो यह भी बताते हैं कि रातापानी को सालों बाद टाइगर रिजर्व घोषित किया गया। तमाम जानकारी के बाद भी अफसरों ने रसूखदारों को फायदा पहुंचाने के लिए भोपाल अर्बन टाइगर और कॉरिडोर के संरक्षण के लिए कदम नहीं उठाया। टाइगर रिजर्व घोषित रातापानी के लिए यह बेहद जरूरी है कि भोपाल में बाघों के पनाहगार जंगलों को संरक्षित किया जाए। दोनों का भविष्य एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। 

रातापानी के लिए भोपाल के जंगल किसी संजीवनी से कम नहीं, रातापानी प्रोजेक्ट की रूपरेखा तैयार कर अंतिम रूप देने वाले पूर्व वन मंत्री और वर्तमान कैबिनेट मंत्री विजय शाह ने वाहवाही तो लूटी। यह भी कहा कि प्रोजेक्ट के लिए मेरी मेहनत आज सफल हुई। लेकिन जब लल्लूराम डॉट कॉम ने रातापानी से भोपाल अर्बन टाइगर को लेकर पूछा तो हँसते हुए कहा, अब पूरा जंगल ही उनका है। 

कांग्रेस ने उठाए सवाल 

मामले को लेकर कांग्रेस ने सरकार पर कई सवाल जरूर खड़े किए। कांग्रेस के पूर्व विधायक शैलेंद्र पटेल ने बताया कि सदन में कई बार इस मसले को लेकर सरकार से जवाब मांगा गया। लेकिन चुप्पी ही उत्तर में सामने आई। कांग्रेस ने आरोप लगाते हुए कहा कि रातापानी के जंगलों के साथ भोपाल के जंगलों को नौचा जा रहा है। रसूखदारों के लिए सरकार ने आंखों पर पट्टी बांधी तो टाइगर रिजर्व का औचित्य ही खत्म होने में समय नहीं लगेगा। उधर बीजेपी ने कांग्रेस के बयान पर पलटवार कर सकारात्मक राजनीति करने की नसीहत दी। साथ ही कहा कि सरकार अपना काम कर रही है.

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