विक्रम मिश्र,लखनऊ। उत्तर प्रदेश की सियासत में नारों का ही हमेशा इकबाल कायम रहा है। इसके साथ ही 85 और 15 की सियासत भी रह रहकर जोर मारती है। ऐसे में अल्पसंख्यक तब महत्वपूर्ण हो जाते है। जब सरकार बनाने की सियासत परवान चढ़ती है। अब यही माजरा कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच देखने को मिल रही है।
लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर कमाल किया था लेकिन अब दोनों ही पार्टी की महत्वकांक्षा उफान पर है। एक तरफ समाजवादी पार्टी पीडीए के नारे में ‘ए’ वाले हिस्से को हमेशा अपने साथ जोड़कर आगे बढ़ना चाहती है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस कभी अपने मजबूत वोट बैंक रहे अल्पसंख्यकों को फिर से अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है।
बहराइच-सम्भल के बहाने सियासत का समीकरण तैयार
बहराइच में हुई हिंसा पर कांग्रेस और सपा का डेलिगेशन अलग-अलग, पीड़ित पक्ष से मिलने पहुंचा था। वहीं सम्भल में ही कमोबेश ऐसी ही राजनीति देखने को मिल रही है। इसी तरह भदोही में समाजवादी पार्टी के विधायक के घर भी सपा के डेलिगेशन से पहले, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय उनके आवास पर पहुंचे थे।
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भाजपा ने कसा तंज
इस विषय को लेकर अब भाजपा तंज कस रही है। भाजपा नेता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि अल्पसंख्यकों के हित को लेकर कभी भी सपा और कांग्रेस आगे नहीं आई है। इसके बावजूद दोनों उनके हितैषी बनने की होड़ में लगे हुए है। जबकि वोट हासिल करने के बाद ये दोनों ही पार्टी उनके लिए कोई काम नहीं करते है।
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