मनोज यादव, कोरबा– जिला चिकित्सालय में बदइंतजामी और लापरवाही हमेशा मिसाल बनती है अब इस घटना को किस नजरिए से देखें कि मरीज का एक परिजन आता है और पैथोलॉजी लैब से सीरिंज लेकर जाता है और ब्लड का सैंपल जमा कर देता है.

दरअसल मामला जिला चिकित्सालय का है. यहां मरीज के रिश्तेदार जिला चिकित्सालय में पदस्थ एक स्टॉफ की पुत्री है. जो अंबिकापुर में नर्सिंग कोर्स की है. यह बात भी ठीक है लेकिन उनकी नियुक्ति जिला चिकित्सालय में नहीं हुई है. बगैर अनुभव के कुछ गड़बड़ी होती तो इसका जिम्मेदार कौन होता ?

पैथोलॉजी लैब स्टॉफ ने कहा कि खुद से रक्त निकालने वाले ऐसा कर देते हैं लेकिन पंचर दर्द का रिस्क मरीज का होता है. लापरवाही की बड़ी हद और क्या होगी. सीनियर डॉक्टर दिव्या ने बताया कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि मरीज के परिजन रक्त निकाल कर उसे जांच के लिए दें. इसके लिए जिला चिकित्सालय में फैकल्टी बनी हुई है जहां बकायदा जांच करने वाली की टीम मौजूद रहती है.

आईएसओ प्रमाणित जिला चिकित्सालय में सुविधाओं की कमी तो है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मरीज के परिजन ही डॉक्टर बन जाए. सुरक्षा के नाम पर हर वार्ड में निजी सुरक्षाकर्मी तैनात हैं पर इन सब को धता बताते मरीज के परिजन यदि खुद शुगर या सीबीसी के लिए कैंप में ही यदि रक्त निकालने लगे तो यह चिकित्सालय प्रबंधन के लिए दुर्भाग्य की बात है.