शब्बीर अहमद, भोपाल। एमपी सरकार पर निजी स्कूल संचालक अभी भी हावी हैं. करीब 3 से 4 महीने पहले सरकार ने एक आदेश जारी करते हुए सभी निजी स्कूल संचालकों से खर्च का ब्यौरा मांगा था लेकिन प्रदेश के करीब 35 हजार से अधिक निजी स्कूलों में से महज 18 हजार निजी स्कूलों ने जानकारी दी है. तीन-चार महीने बीत जाने के बाद भी अब तक प्रशासन ने 15 हजार निजी स्कूलों पर कार्रवाई नहीं की है. जिन्होंने सरकार को अपने खर्च का ब्यौरा नहीं दिया है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर कब तक निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगेगी और बच्चों की पढ़ाई के लिए मनमानी फीस वसूलने वाले स्कूल संचालकों पर शिकंजा कब कसा जाएगा।
मध्यप्रदेश में निजी स्कूल संचालक बच्चों की पढ़ाई के लिए मोटी रकम वसूल रहे हैं. इन स्कूल संचालकों के खिलाफ सबसे पहले जबलपुर कलेक्टर ने कार्रवाई शुरू की. स्कूलों को नोटिस दिया और कई स्कूल संचालक जेल तक चले गए. जिन्होंने मनमानी फीस वसूली थी उन पर कार्रवाई करने के लिए पूरे प्रदेशभर में सरकार ने निर्देश दिए. यहां तक की कलेक्टर के हस्तक्षेप के बाद स्कूल संचालकों ने बच्चों की फीस तक लौटाई. इसके बाद स्कूल संचालकों का तर्क था कि बच्चों की पढ़ाई के साथ-साथ स्कूल के काफी ज्यादा खर्चे हैं. इसके बाद सरकार ने उनसे 3 साल तक खर्च की पूरी जानकारी बुलाई. फिर भी मनमानी रवैया अपनाते हुए स्कूल संचालकों ने सरकार को जानकारी नहीं दी है.
सरकार ने स्कूल संचालकों को दिया टाइम
मनमानी फीस वसूली और निजी स्कूलों की तरफ से नहीं जानकारी दिए जाने पर मध्य प्रदेश पलक महासंघ के अध्यक्ष कमल विश्वकर्मा का कहना है कि सरकार ने स्कूल संचालकों को टाइम दिया है. इसके बाद भी जो स्कूल संचालक जानकारी नहीं दे रहे हैं। उनके खिलाफ जुर्माने का भी प्रावधान है लेकिन हैरत इसी बात की है कि अब तक एक भी स्कूल संचालक के खिलाफ जुर्माने की कार्रवाई नहीं की गई है.
सरकार का शिक्षा की ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं
इधर बीजेपी के विधायक ने भी मामले में संज्ञान लेते हुए कहा कि सरकार ऐसे स्कूल संचालकों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है, जो बच्चों की पढ़ाई के लिए मोटी रकम वसूल रहे हैं. शिक्षा महादान का काम है लेकिन महादान के नाम पर लोगों से ज्यादा फीस स्कूल संचालक ले रहे हैं और उनके खिलाफ सरकार सख्ती से कार्रवाई कर रही है. कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद का कहना है कि सरकार का शिक्षा की ओर ध्यान बिल्कुल भी नहीं है. सिर्फ हवा हवाई बातें की जाती है, जबकि प्रदेश के स्कूलों की हालत किसी से छुपी नहीं है. सरकारी स्कूल पूरी तरीके से जर्जर खराब हो चुके हैं. यही वजह है कि लोग निजी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ने के लिए मजबूर भी है.
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