विक्रम मिश्र, लखनऊ। आईसीडीएस में मनमाने ढंग से प्रमोशन का खेल चल रहा था। बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग (आईसीडीएस) में 1149 को बिना पद के ही प्रमोशन दे दिया गया। आंतरिक लेखा एवं लेखा परीक्षा की विशेष जांच में सामने आया कि 2010 से चहेतों को मनमाने तौर पर प्रमोशन और एश्योर्ड कॅरियर प्रमोशन’ (एसीपी) का फायदा देने का खेल चल रहा था। टीम ने 20 दिसंबर से 11 जनवरी तक चली जांच की रिपोर्ट वित्त विभाग और बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग को सौंप दी है। शासन ने जांच रिपोर्ट के आधार पर निदेशक बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार से रिपोर्ट तलब की है।

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आईसीडीएस में तैनात कई लिपिकों को बिना पद के ही प्रमोशन और एसीपी का लाभ देने के खेल को उजागर किया गया था। वित्त विभाग ने 6 जून 2018 को इसकी विशेष जांच कराने का निर्देश दिया था। आंतरिक लेखा एवं लेखा परीक्षा की 5 सदस्यीय विशेष टीम की जांच में सामने आया कि सेवा नियमावली 1992 के मुताबिक प्रदेश में 932 लिपिकीय पद ही स्वीकृत हैं, जबकि विभाग ने ऑडिट टीम को 2081 पद होने की जानकारी दी है। यानी लिपिक संवर्ग के 1149 पदों पर नियमावली के विपरीत प्रोन्नति दी गई। अकेले निदेशालय बाल विकास पुष्टाहार में ही 31 कर्मचारियों को नियम-कानून दरकिनार कर प्रमोशन दे दिया गया। इस पर ऑडिट टीम ने विभाग और मुख्यालय में तैनात अफसरों की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

लिपिक को एक ही दिन में दे दिए 2 प्रमोशन

जांच रिपोर्ट के मुताबिक 2003 में कनिष्ठ लिपिक के पद पर भर्ती हुए अजीत प्रताप यादव पर अफसर इतने मेहरबान हुए कि उन्हें एक ही दिन में दो प्रमोशन दे दिए। अजीत को 1 सितंबर 2012 को कनिष्ठ लिपिक से वरिष्ठ लिपिक और फिर प्रधान सहायक के पद पर प्रोन्नति देते हुए 4200 का ग्रेड पे दे दिया गया। नियमानुसार एक पद पर कम से कम पांच साल की सेवा के बाद ही प्रमोशन देने का प्रावधान है। रिपोर्ट में पांच अन्य कनिष्ठ लिपिकों को भी प्रधान सहायक के पद पर प्रमोशन दिए जाने का जिक्र है। इनमें कुलदीप सिंह, गिरीशचंद्र डिमरी, राजेश काके, नीलम शुक्ला व सरिता सिंह शामिल हैं।

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सरकारी नियमों की अनदेखी

ऑडिट टीम को जांच के दौरान पता चला कि बहुत से कर्मियों को 1 सितंबर 2012 को ही वे सारे लाभ दे दिए गए, जिसे देने के लिए सरकार ने 15 अक्तूबर 2015 को शासनादेश जारी कर मंजूरी दी। यानी शासनादेश जारी होने के तीन साल पहले ही प्रमोशन व एसीपी समेत सारे लाभ दे दिए गए। इसके लिए न तो वरिष्ठता सूची बनाई गई और न ही नियमावली में संशोधन कर कैबिनेट से ही मंजूरी ली गई। कनिष्ठ लिपिक से वरिष्ठ सहायक: अजय कुमार बाजपेई, प्रकाश वीर सिंह, अनिल कुमार श्रीवास्तव, ओंकारनाथ गोंड, उपेंद्र कुमार श्रीवास्तव, रिजवान अहमद, राजेंद्र प्रसाद कन्नौजिया, तेजपाल सिंह, राजदेव प्रधान, योगेंद्र कुमार यादव, लाल बिहारी, सतीश कुमार वर्मा, राजेंद्र कुमार शुक्ला, सुषमा बहुगुणा, श्याम नारायण, उषा श्रीवास्तव, बजरंग बली पांडेय, निशा शुक्ला, अभिषेक वाजपेई व विशाल श्रीवास्तव।चतुर्थ श्रेणी से कनिष्ठ लिपिक: राम कुमार, सत्य नारायण, राजाराम गौड़ व मधु बहल।

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मामले पर बाल विकास एवं पुष्टाहार की राज्य मंत्री प्रतिभा शुक्ला से बात की गई लेकिन उनको इस विषय मे कोई जानकारी नहीं होने की बात कही है। जबकि इस बाबत लल्लूराम डॉटकॉम ने उनको जानकारी भेजी तो उन्होंने जांच करवाने की बात कही है। आंतरिक लेखा एवं लेखा परीक्षा की जांच रिपोर्ट मिलने के बाद निदेशक बाल विकास एवं पुष्टाहार से रिपोर्ट मांगी गई है। रिपोर्ट आने के बाद ही साफ हो सकेगा कि मामले में कौन कितना जिम्मेदार है। उसी के आधार पर ही आगे की कार्रवाई होगी।

कैबिनेट मंत्री मौर्य ने दिया जांच का आश्वासन

इस जांच का हवाला देकर आईसीडीएस द्वारा नियमावली के विरुद्ध कनिष्ठ सहायकों का प्रमोशन नहीं किया जा रहा है। जिन्होंने 10 वर्षों की सेवाएं पूर्ण कर ली ही यानि नियमानुसार 5 साल से उनकों प्रमोशन से वंचित रखा गया है। इस बाबत जब कैबिनेट मंत्री बेबी रानी मौर्य से लल्लूराम डॉटकॉम ने जब पूछा तो उन्होंने मामले पर संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करवाने की बात तो कही लेकिन फिर उन्होंने विभाग की तारीफ में ही अपना पूरा दम लगा दिया। आपको बता दें कि ये प्रकरण बहुत पुराना है और इस मामले में बहुत से लोग विभागीय रडार पर भी है लेकिन अभी तक उनका बाल भी बांका नहीं हुआ है।