Lalluram Desk. माना जाता है रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई है. प्राचीनकाल से ही रुद्राक्ष का उपयोग कई तरहोें से किया जा रहा है. जिसे आभूषण के रूप में, सुरक्षा के लिए, ग्रह शांति के लिए और आध्यात्मिक लाभ के लिए किया जाता रहा है. कुल मिलाकर सत्रह प्रकार के रुद्राक्ष मुख्य रूप से पाए जाते हैं, लेकिन ग्यारह प्रकार के रुद्राक्ष का विशेष रूप से उपयोग किया जाता है.
रुद्राक्ष के फायदे अद्भुत हैं और इसका प्रभाव भी स्पष्ट है, लेकिन यह तभी संभव है जब रुद्राक्ष को सावधानीपूर्वक और नियमों का पालन करते हुए पहना जाए. नियमों को जाने बिना गलत तरीके से रुद्राक्ष पहनना बिल्कुल भी फायदेमंद नहीं है, इससे नुकसान भी हो सकता है.
रुद्राक्ष धारण करने के नियम
शास्त्रों में रुद्राक्ष के शुभ फल से जुड़ी कुछ बातों का पालन करना भी जरूरी माना गया है, अन्यथा यह शुभ फल देने की बजाय अदृश्य दोष देने लगता है. इसलिए रुद्राक्ष धारण करने के बाद मांस-मदिरा से दूर रहें, लहसुन-प्याज से दूर रहें, सत्य का आचरण करें, झूठी संगति से बचें. रुद्राक्ष को कभी भी जमीन पर नीचे न रखें और न ही किसी अपवित्र स्थान पर रखें.
खंडित रुद्राक्ष कैसे धारण ना करें
कुछ रूद्राक्षों में कीड़े लग जाते हैं, कुछ टूट जाते हैं, खंडित हो जाते हैं, यदि कभी रूद्राक्ष में छेद हो जाए तो ऐसे रूद्राक्ष को नहीं पहनना चाहिए. ऐसा रुद्राक्ष धारण करें जो गोल हो, जिसमें दाने ठीक से दिखाई देते हों, धागा पिरोने के लिए प्राकृतिक छेद वाला रुद्राक्ष सर्वोत्तम होता है, ऐसा रुद्राक्ष धारण करना चाहिए. रुद्राक्ष धारण करने से पहले शिवलिंग के साथ-साथ रुद्राक्ष की भी पूजा करनी चाहिए.