विक्रम मिश्र, लखनऊ। उत्तर प्रदेश आबादी के लिहाज से बड़ा प्रदेश है। जबकि सरकारी व्यवस्थाओं और संतुलन के लिए यहां के राजभवन की महती ज़िम्मेदारी भी है। केंद्र सरकार से लगाये राज्य सरकार के मध्य संतुलन का कार्य ही तो राजभवन का प्रथम दायित्व है। लिहाजा केंद्र की मोदी सरकार अभी भी यूपी में पदस्थ राज्यपाल को नहीं बदलना चाहती है। प्रधानमंत्री के साथ आनंदीबेन पटेल के कार्य करने का अनुभव बहुत लंबा रहा है। जबकि उनके हर फैसलों और रणनीति को यूपी की राज्यपाल अच्छे ढंग से समझती है। लिहाजा उनका कार्यकाल पूर्ण हुए भी एक अच्छा खासा वक़्त गुजर गया है लेकिन अभी यूपी में आनंदी बेन पटेल बतौर राज्यपाल पदस्थ है।

कई प्रदेशों के राज्यपाल बदले

डॉ. हरि बाबू कंभमपति को ओडिशा का राज्यपाल बनाया गया है। जनरल (डॉ.) विजय कुमार सिंह (सेवानिवृत्त) को मिजोरम का राज्यपाल, राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर को केरल का राज्यपाल, आरिफ मोहम्मद खान को बिहार का राज्यपाल और अजय कुमार भल्ला को मणिपुर का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। जिसके बाद ऐसी कयासबाजी चल रही है कि महाकुंभ के समाप्ति के बाद यूपी की राजनैतिक समीकरण में थोड़े बदलाव हो सकते है। आपको बता दें कि भाजपा संगठन का चुनाव प्रक्रिया चल रही है। जिसमे की ऊपर से नीचे तक हर स्तर पर चुनावी समीकरण को साधने की स्थिति बनाई जा रही है। जिससे कि यूपी में होने वाले 2027 के चुनाव में बेहतर परिणाम मिल सके।

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प्रधानमंत्री की खास है आनंदी बेन

यूपी में चल रहे तमाम घटनाक्रमों के बीच नजरें अब राजभवन पर भी हैं। मौजूदा राज्यपाल आनंदीबेन पटेल का कार्यकाल बीते 29 जुलाई को खत्म हो चुका है। गुजरात से आने वाली और वहां की प्रथम महिला मुख्यमंत्री रही आनंदीबेन की गिनती पीएम नरेंद्र मोदी के विश्वासपात्र लोगों में होती है। ऐसे में नजरें इस पर टिक गई हैं कि आनंदीबेन का कार्यकाल आगे भी जारी रहेगा या फिर संगठन चुनाव के बाद प्रमुख संवैधानिक पद को बदला जा सकता है।

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आपको बता दें कि पूर्व कैबिनेट मंत्री लालजी टंडन(स्वर्गीय) को 28 जुलाई 2019 को मध्य प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया था और आनंदीबेन को उत्तर प्रदेश की संवैधानिक मुखिया की जिम्मेदारी दे दी गई थी। 29 जुलाई 2019 को उन्होंने यहां कार्यभार संभाला था। राज्यपाल की नियुक्ति आम तौर पर पांच साल के लिए होती है। ऐसे में उनका कार्यकाल बीते 29 जुलाई को समाप्त हो चुका है। नवंबर में आनंदीबेन 83 साल की भी हो चुकी है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे है कि सन्गठन के चुनाव और महाकुंभ 2025 के सफल सम्पादन के बाद यूपी के संवैधानिक पद पर कोई नया चेहरा दिख सकता है।