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Mahakumbh 2025 Mahila Naga Sadhu. डेस्क. 13 जनवरी से महाकुंभ की शुरुआत होने जा रही है. कुंभ का मुख्य आकर्षण नागा साधु होते हैं. यहां भी लाखों की संख्या में नागा साधु शामिल होंगे. जो संगम पर स्नान करेंगे. इनके साथ महिला नागा साधु भी शामिल होगी. लेकिन क्या आप जानते हैं कि महिला नागा साधु या नागा साधु बनने की क्या प्रक्रिया होती है. क्या नियम होते हैं, कैसे बनते हैं? लल्लूराम डॉट कॉम की महाकुंभ महाकवरेज की सीरिज में हम आपको नागा साधुओं के बारे में बता रहे हैं.
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नागा साधु अपने आप में एक रहस्य हैं. इनका पूरा जीवन ही रहस्य से भरा हुआ होता है. इनकी नियुक्ति से लेकर साधु बनने की प्रक्रिया तक सभी रहस्यों से भरे पड़े हैं. महाकुंभ में नागा साधुओं का विशेष महत्व होता है. या यूं कहें कि इनके बिना महाकुंभ की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. क्योंकि यही एक अवसर होता है जब नागा साधु लोगों के सामने आते हैं. इनमें भी महिला नागा साधु. क्योंकि आम तौर पर महिला नागा साधु किसी के सामने नहीं आती.
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कैसे बनते हैं महिला नागा साधु?
वैसे तो नागा साधु बनने की प्रक्रिया पुरुष और महिला के लिए एक ही है, लेकिन महिलाओं के लिए ये नियम कहीं-कहीं पर बदले हैं. नागा साधुओं को कुंभ के आयोजन के दौरान ही दीक्षा दी जात है. जिसमें सबसे पहले तो कोई नागा साधु बनने के लिए अखाड़े में जाता है तो उसे ऐसे ही दीक्षा नहीं दे दी जाती है. पहले उनके बारे में जांच-परख की जाती है. उनके परिवार के बारे में जानकारी ली जाती है. यहां तक की नागा साधु बनने की इच्छा के पीछे क्या कारण है इसका भी पता अखाड़ों के द्वारा लगाया जाता है. जब पूरी जानकारी मिल जाती है और इससे संतुष्टि हो जाती है तब जाकर नागा साधु बनने की दीक्षा दी जाती है.
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तीन चरणों से गुजरती है नागा साधु बनने की प्रक्रिया
दीक्षा मिलने का निर्णय होने के बाद नागा साधु बनने की प्रक्रिया शुरु होती है. तीन चरणों में होने वाली इस प्रक्रिया में सबसे पहले-
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- नागा साधु बनने वाली महिला को अपना ही पिंडदान करना होता है. महिला का मुंडन होता है, फिर पिंडदान होता है. इसके बाद पवित्र नदी में स्नान करना होता है. इस सभी प्रक्रिया में पांच गुरुओं आवश्यकता होती है. जिसमें प्रत्येक गुरु को कुछ दक्षिणा देना होती है. इसके अलावा ब्राह्मण भोज भी करवाना पड़ता है. इस प्रक्रिया में जो भी खर्च आता है वो नागा बनने वाले को ही देना होता है. यदि वे सक्षम ना हो तो उसके गुरु के पास ये राशि देने का अधिकार होता है.
- दूसरी प्रक्रिया में शिष्य को गुरु जनेऊ और कंठी धारण कराते हैं. गुरु ही शिष्य को दिगंबर होने के लिए प्रेरणा देते हैं. जिसके बाद वस्त्र की जगह पर महिला नागा साधु अपने शरीर में श्मशान की राख को मलती हैं. इसके साथ पिंडदान संपन्न होता है. नागा साधु गुरु का शिष्य हो जाता है.
- तीसरी प्रक्रिया में पंच संस्कार होता है. ये सिद्ध दिगंबर होने के बाद होता है. इन सब प्रक्रिया के बाद महिला नागा साधु गुरु की सेवा करती हैं. जो आमतौर पर महिला ही होती है. वो 1 से 2 साल तक शिष्यों की परीक्षा लेती हैं और इससे संतुष्ट होने के बाद इन्हें मंत्र दिया जाता है.
चार प्रकार के नागा साधु
- प्रयाग में होने वाले कुंभ से दीक्षित नागा साधु को राजेश्वर कहा जाता है. क्योंकि ये संन्यास के बाद राजयोग की कामना रखते हैं.
- उज्जैन कुंभ से दीक्षा लेने वाले साधुओं को ‘खूनी नागा’ कहा जाता है. इनका स्वभाव काफी उग्र होता है.
- हरिद्वार दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं को बर्फानी कहते हैं. ये शांत स्वभाव के होते हैं. .
- नाशिक कुंभ में दीक्षा लेने वाले साधु को ‘खिचड़ी नागा’ कहलाते हैं. इनका कोई निश्चित स्वभाव नहीं होता.
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महिला नागा साधु के लिए नियम
- नियमानुसार महिला नागा साधुओं को अपने अखाड़े में ही रहना पड़ता है. किसी भी स्थिति में इन्हें अखाड़े से बाहर नहीं जा सकती.
- नियमित रुप से गुरु मंत्र का जप करना होता है. गुरु मंत्र को किसी दूसरे को नहीं बता सकते.
- महिला नागा पूरी तरह निर्वस्त्र नहीं हो सकतीं. इन्हें भगवा रंग का एक बिना सीला हुआ कपड़ा शरीर पर डालना जरुरी है. जो कि बारो महीने के लिए है. इसके अलावा कोई अन्य वस्त्र नहीं.
- इन्हें अखाड़ों के अनुसार ही खाना, सोना होता है. नियम का उल्लंघन होने पर इन्हें दंड भी दिया जाता है. या फिर अखाड़े से निकाल दिया जाता है.
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