MahaKumbh Kalpvas, डेस्क : 13 जनवरी से महाकुंभ 2025 का शुभारंभ हो जाएगा. महाकुंभ में कल्पवास का बहुत महत्व होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिस व्यक्ति ने महाकुंभ के दौरान कल्पवास (Kalpvas 2025) का नियम संयम से पालन कर लिया तो उसे भगवान की कृपा प्राप्त होती है और उसके जीवन में सुख-समृधि, सौभाग्य, संपन्नता और सकारात्मकता का वास होता है. लेकिन आखिर ये कल्पवास क्या होता है. इस शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई. कल्प शब्द का अर्थ क्या है. लल्लूराम डॉट कॉम के महाकुंभ महाकवरेज की सीरिज में हम आपको बता रहे हैं कल्प क्या है और व्यवहारिक धरातल पर इसके क्या मायने हैं?
कल्प सनातन सभ्यता में समय चक्र की एक लंबी ईकाई होती है. एक कल्प का मतलब ब्रह्मा जी के एक दिन होता है. साल के हिसाब से देखें तो 4.32 अरब साल. जिसमें हर कल्प के बाद प्रलय आती है और संसार की रचना नए सिरे से होती है. वेदों में ब्रह्मा की उम्र 100 साल कही गई है. इसके मुताबिक, पूरे ब्रह्मांड की उम्र 311.04 लाख साल है. यानी अभी हम ब्रह्मा के 51वें साल के पहले दिन में हैं.
कल्प का मतलब हम आध्यात्म और विज्ञान दोनों मायनों में समझ सकते हैं. हमारे शास्त्रों में कल्प का उल्लेख मिलता है. इस कल्प की पूरी गणना विष्णु पुराण और भागवत पुराण में वर्णित है. वैदिक गणना के मुताबिक सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग के कुल वर्षों को मिलाकर एक कल्प होता है. मान्याताओं के अनुसार सृष्टि के सृजन के बाद ब्रह्मा जी ने भी कल्पवास किया था.
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आधी आयु पार कर चुकी है हमारी सृष्टि
वैदिक गणना के अनुसार हमारी सृष्टि की आधी आयु पूरी हो चुकी है. कल्पवास के पीछे इसी सृष्टि से सीधे संपर्क और संवाद स्थापित करने की अवधारणा है. सनातन संस्कृति में सृष्टि के प्रति इसी सपर्पण को आस्था से जोड़ा गया है. जिससे कि हम आध्यात्मिक और भौगोलिक दोनों भाव से जुड़े रहें.
हर पूजा में होता है कल्प का जिक्र
“ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद् भगवतो महापुरूषस्य,विष्णुराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य (रात मे : अस्यां रात्र्यां कहे) ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीये परार्धे श्रीश्वेत वाराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भारतवर्षे भरतखण्डे जम्बूद्वीपे आर्यावर्तैक देशान्तर्गते ………… ये मंत्र तो हम सभी ने हर एक पूजा या अनुष्ठान में सुना होगा. जिसे हम सभी संकल्प मंत्र के नाम से जानते हैं. इस मंत्र में कल्प शब्द का उल्लेख है. पूजा से पहले जो संकल्प लिया जाता है उसमें कल्प, मन्वन्तर, युग, चरण, देश, क्षेत्र, समय, नक्षत्र, दिन आदि सभी चीजों को बोला जाता है.
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कब होता है कल्पवास?
सबसे पहले जानते हैं कल्पवास (Kalpvas 2025) क्या होता है? एक महीने तक संगम के तट पर रहकर वेदाध्ययन, ध्यान और पूजा में संलग्न रहने को कल्पवास कहा जाता है. कल्पवास की शुरुआत पौष मास के 11वें दिन यानी एकादशी से होगी. जो कि माघ मास के 12वें दिन यानी द्वादशी तक रहेगी. इस पूरे महीने साधक जप-तप आदि करता है. साधक को पूरे समय नियम-संयम से रहना होता है.
कितनी होती है कल्पवास की अवधि?
कुछ लोग मकर संक्रांति से भी कल्पवास की शुरुआत करते हैं. कल्पवास का सबसे कम समय एक रात होता है. इससे ज्यादा की संख्या तीन रात, तीन महीने, 6 महीने, 6 साल, 12 साल या जीवनभर की भी होती है.
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कल्पवास के नियम? (MahaKumbh Kalpvas)
पद्म पुराण में महर्षि दत्तात्रेय द्वारा बताए गए कल्पवास के नियमों के अनुसार, जो लोग 45 दिन तक कल्पवास में रहते हैं उनके लिए 21 नियमों का पालन करना आवश्यक है. जिसमें अन्तर्मुखी जप, सत्संग, संकल्पित क्षेत्र के बाहर न जाना, किसी की निंदा न करना, साधु-सन्यासियों की सेवा करना, जप और संकीर्तन में संलग्न रहना, एक समय भोजन करना, भूमि शयन करना, अग्नि सेवन न कराना, देव पूजन करना शामिल है. कल्पवास गृहस्थी भी कर सकते हैं.
कुछ भक्तों के परिवारों में कल्पवास की परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी से चलती है. जिसका पालन आज भी किया जाता है. कल्पवास का नियम कठिन होता है. इसका पालन करने से सभी मनाकामनोओं की पूर्ति होती है और साधक को सुख-समृद्धिक की प्राप्ति होती है.
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