छत्तीसगढ़ में एक ऐसी गुफा है जिसे दुनिया का सबसे प्राचीन नाट्यशाला कहा जाता है. एक ऐसी पहाड़ी जहां महान कवि कालिदास ने मेघदूत की रचना की थी. एक ऐसी गुफा जहां त्रेता युग में भगवान राम ने माता सीता के साथ वनवास का कुछ वक्त बिताया था. ये गुफा कहीं और नहीं बल्कि रामगढ़ की पहाड़ी में है.
प्राचीन नाट्यशाला-
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 3 सौ 25 किलीमीटर दूर सरगुजा जिले के उदयपुर ब्लॉक में स्थित है रामगढ़. अंबिकापुर-बिलासपुर राष्ट्रीय राजमार्ग में हाइवे से 3 किलीमीटर अंदर सुरम्य जंगल वाला यह रामगढ़ पहाड़ी एक ऐतिहासिक जगह है. पहाड़ के ऊपर यह तीन कमरों वाला गुफा दुनिया का सबसे प्राचीन नाट्यशाला माना जाता है. गुफा से प्राप्त शिलालेखों के मुताबिक, इस नाट्यशाला का निर्माण ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का माना जाता है.
गुफा का परिसर 45 फुट लंबा और 15 फुट चौड़ा है. यह माना जाता है कि इस गुफा का संचालन किसी ‘सुतनुका देवदासी’ के हाथ में था. यह देवदासी रंगशाला की रूपदक्ष थी. यह भी कहा जाता है कि इस गुफा में उस समय क्षेत्रीय राजाओं द्वारा भजन-कीर्तन और नाटक आदि करवाए जाते रहे होंगे. गुफा के द्वार की ऊंचाई 6 फीट है, जो भीतर जाकर 4 फीट ही रह जाती है.
नाट्यशाला को प्रतिध्वनि रहित करने के लिए दीवारों को छेद दिया गया है. गुफा तक जाने के लिए पहाड़ियों को काटकर सीड़ियां भी बनाई गई हैं. इसमें सीढ़ीदार दर्शक दीर्घा गैलरीनुमा ऊपर से नीचे की ओर अर्द्धाकार स्वरूप में चट्टान को इस तरह काटा गया है कि दर्शकदीर्घा में बैठकर आराम से कार्यक्रमों को देखा जा सके.
सीता-बोंगरा गुफा –
जन मान्यताओं के मुताबिक, इस गुफा को सीता-बोंगरा गुफा भी कहा जाता है. माना जाता है कि त्रेता युग में वनवास काल के दौरान भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता के साथ यहां पहुंचे थे. सरगुजा में बोंगरा (भेंगरा) का अर्थ कमरा होता है. माना जाता है कि माता सीता इसी कमरे में रहती थीं. लिहाजा इसे सीता-बोंगरा गुफा भी कहा जाता है. वैसे गुफा में खंभे गाड़ने के लिए खुदे गड्ढे और भगवान राम के चरण अंकित हैं.
गुफा के बाहर दो फुट चौड़ा गड्ढा भी है, जो सामने से पूरी गुफा को घेरता है. मान्यता है कि यह लक्ष्मण रेखा है. इसके बाहर एक पांव का निशान भी है. इस गुफा के बाहर एक सुरंग है. इसे ‘हथफोड़ सुरंग’ के नाम से जाना जाता है. इसकी लंबाई करीब 500 मीटर है. यहां पहाड़ी में राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान की 12-13वीं सदी की प्रतिमा भी है. चैत्र नवरात्र के अवसर पर यहां मेला लगता है.
मेघदूत की रचना स्थली-
रामगढ़ के इसी पहाड़ी पर महान कवि कालीदास ने विख्यात रचना ‘मेघदूत’ लिखी थी. माना जाता है कि कालीदास ने जब उज्जयिनि का परित्याग किया था तो यहीं आकर उन्होंने साहित्य की रचना की थी. इसलिए ही इस जगह पर आज भी हर साल आषाढ़ के महीने में बादलों की पूजा की जाती है. भारत में संभवत: यह अकेला स्थान है, जहां कि बादलों की पूजा करने का रिवाज हर साल है. इस पूजा के दौरान देखने में आता है कि हर साल उस समय आसमान में काले-काले मेघ उमड़ आते हैं.
पर्यटन के लिहाज से उपेक्षित-
फिलहाल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तहत यह इलाका संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया, लेकिन सुरक्षा के लिहाज से सिवाय संरक्षित क्षेत्र लिखा और कुछ भी नहीं है. राज्य सरकार की ओर से हर साल रामगढ़ महोत्सव का आयोजन होता है और कुछ भी नहीं. यहां आने वाले पर्यटकों को किसी तरह की कोई ऐतिहासिक जानकारी भी मिल सके इसकी व्यवस्था भी नहीं की गई है.
पर्यटन के लिहाज से यह अपार संभावनाओं वाला इलाका है, लेकिन राज्य शासन की ओर से उपेक्षित है. रामगढ़ की पहाड़ी का भ्रमण करने आने वाले पर्यटकों को किसी भी तरह की कोई व्यवस्था नहीं. यहां आने पर न तो आपको इतिहास की जानकारी मिलेगी और ना ही कोई गाइड मिलेगा जो आपको गुफा की खासियत बता सके.