बीडी शर्मा, दमोह। मध्य प्रदेश के दमोह जिले में वर्षों बाद हो रही श्वेतांबर जैन मुनि की अगवानी आचार्य महाश्रमण मुनि के शिष्यमुनि श्री सुधाकर जी महराज, मुनि नरेश कुमार रायपुर छत्तीसगढ़ से चातुर्मास करने के पश्चात मंडला, जबलपुर, पदयात्रा करते हुए दमोह जिले प्रवेश हुआ है। गुरुवार को मुनि श्री ग्राम मारुताल स्थित मध्यमिक शाला में विश्राम हुआ। वहीं शुक्रवार की सुबह पद विहार दमोह शहर से होते हुए इम्लाई के गणेश पुरम में होगा।
समय न किसी का इंतजार करता है, न इकरार
इस दौरान जैन मुनि श्री सुधाकर जी महाराज ने बताया कि समय न किसी का इंतजार करता है, न इकरार करता है। क्योंकि समय के पांव नहीं पंख होते है। समय सरिता की तरह निरंतर प्रबन्धकार होता है। मुनिश्री ने कहा कि हमें बचपन से सिखाया गया कि चार चीजें, पहला कमान से निकला तीर, दूसरा खोया अवसर, तीसरा मुंह से निकला शब्द चौथा जो सबसे महत्वपूर्ण है वह बीता हुआ वक्त। मुनिश्री ने कहा कि जो समय बीत गया लाख कोशिश करने के बावजूद भी वह लौटकर नहीं आता। जो समय का सम्मान करता है, समय उसे सम्मानित बना देता है।
जो समय का सही नियोजन करता है, वही अपने जीवन का कल्याण कर सकता है। भगवान महावीर की ऐसे अनेको को अनेक सूत्र है, जिनसे हमें समय प्रबंधक की प्रेरणा मिलती है। सुधाकर जी महाराज ने कहा कि काली कलम समय रे, यह समय प्रबंधन का महानतम सूत्र है कि जो काम जिस समय करना है आप उसे काम को इस समय पर करना सीखें। दुनिया में हर व्यक्ति को 24 घंटे ही मिलते हैं। कई बार मैं सोचता हूं क्या गाय दूध देती है तो सामान्य व्यक्ति का उत्तर यही होगा, कि गाय दूध देती है। मगर नहीं, गाय केवल गोबर और गोमूत्र देती है। बल्कि दूध निकालना पड़ता है। इसी तरह से हर व्यक्ति को जीवन में 24 घंटे ही मिलते हैं। मगर महान व्यक्ति वह होता है जो उन 24 घंटे में से अपने आध्यात्मिक उन्नयन के लिए अपने उत्थान के लिए विकास के लिए जीवन को उन्नत सफल और सुखी बनाने के लिए समय का सही उपयोग करता है।
समय प्रबंधन के लिए समय का अंकेक्षण करें
मुनिश्री ने कहा कि संगत नियोजन करता है, समय प्रबंधन के लिए समय का अंकेक्षण करें ”ऑडिट आफ लाइफ” की जब तक आप समय का ऑडिट करना अंकेक्षण करना नहीं सीखेंगे, तब तक जीवन में समय प्रबंधन नहीं कर पाएंगे। हर क्षण एक अवसर है, यह मनुष्य जीवन अत्यंत दुर्लभतम है वह व्यक्ति धन्य होता है। जो चिता जलने से पहले अपनी चेतना को जगा लेता है, अर्थी उठने से पहले जीवन के अर्थ को समझ लेता है, मौत आने से पहले मुक्ति के सूत्र को तलाश लेता है और अंत्येष्टि बने उससे पहले वह परमेष्ठी की शरण में चला जाता है। क्योंकि जन्म और मृत्यु का संबंध अभिनव भावी है। जहां जन्म है वहां मृत्यु है, जो सूर्य उदय होगा अस्त होना उसकी नियति है। जो फूल खिलेगा मुरझाना उसकी सच्चाई है। लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि कौन व्यक्ति कैसे जीता है।
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